Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Kirat Se Yudh” , “किरात से युद्ध” Complete Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

 किरात से युद्ध

Kirat Se Yudh

 

 

हिमालय की तराई में एक सघन वन था| वन में तरह-तरह के पशु-पक्षी रहते थे| वहीं जगह-जगह ऋषियों की झोंपड़ियां भी बनी हुई थीं| ऐसा लगता था मानो प्रकृति ने अपने हाथों से उस वन को संवारा हो| उन्हीं झोंपड़ियों के पास एक तेजस्वी युवक बहुत दिनों से अंगूठे के बल खड़ा होकर तप में लीन था| उसने खाना-पीना सबकुछ छोड़ दिया था| वह केवल हवा पीकर ही रहता था| उसका शरीर सूख गया था, सिर के बाल बढ़ गए थे, पर चेहरे पर तेज बढ़ता जा रहा था, लगता था, मानो दूसरा सूर्य निकल रहा हो|

 

वह तपस्वी पांडवों का भाई अर्जुन था| वेदव्यास की सलाह से वह दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए शिवजी को प्रसन्न करने की चेष्टा कर रहा था; क्योंकि छली, षड्यंत्रकारी और पापी कौरवों को हराने के लिए शिवजी की शरण में जाने के अतिरिक्त बेसहारा पाण्डवों के पास अब कोई चारा नहीं रह गया था|

 

अर्जुन के तप के तेज से आसपास की धरती जलने लगी| झोपड़ियों में रहने वाले ऋषि-मुनि घबरा उठे| वे अर्जुन को समझाने लगे कि वह ऐसा कठिन तप न करे, पर अर्जुन ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया| ध्यान भी वह कैसे दे सकता था| उसे तो अधर्म और अन्याय को मिटाने के लिए शिवजी से दिव्यास्त्र प्राप्त करने थे| अत: वह तप में लगा रहा|

 

अर्जुन ने जब ऋषियों की बात पर ध्यान नहीं दिया तो ऋषिगण सामूहिक रूप से शिवजी से प्रार्थना करने लगे, प्रभो ! अर्जुन के तप से धरती जल रही है| अगर आप उसे रोकेंगे नहीं तो इस वन में हम लोगों का रहना कठिन हो जाएगा|

 

उसी समय आकाशवाणी हुई, ऋषियों ! घबराओ नहीं| अर्जुन पूर्वजन्म का देवता है| उसके तप से तुम्हारा अनिष्ट नहीं होगा| वह मुझसे दिव्यास्त्र लेना चाहता है| मैं उसके तप से प्रसन्न हूं|

 

यह वाणी स्वयं भगवान आशुतोष की थी| अर्जुन बड़ी श्रद्धा से उनकी आराधना में लगा रहा, उन्हें प्रसन्न करने के लिए तप करता रहा| दोपहर का समय था| अर्जुन अपनी पूजा की माला भगवान के चरणों पर चढ़ रहा था| सहसा उसे एक शूकर दिखाई पड़ा, जो कहीं से निकलकर उसी ओर आ रहा था| अर्जुन ने झट अपना धनुष-बाण उठाया और धनुष पर बाण चढ़ाकर शूकर पर चला दिया| बाण शूकर की छाती में लगा| वह धरती पर गिरकर, कुछ देर तक तड़पकर सदा के लिए सो गया| अर्जुन के बाण के साथ ही साथ शूकर की छाती में एक और भी बाण लगा था| वह बाण एक किरात का था, जो दूर से शूकर का पीछा करता हुआ आ रहा था|

 

शूकर जब धरती पर गिरा, तब अर्जुन और किरात दोनों शूकर के पास जा पहुंचे| अर्जुन ने कहा, शूकर की मृत्यु उसके बाण से हुई है| पर किरात ने उसकी बात का विरोध किया| उसने कहा, नहीं, शूकर की मृत्यु अर्जुन के बाण से नहीं, उसके बाण से हुई है| शूकर की मृत्यु को लेकर अर्जुन और किरात में विवाद होने लगा| दोनों ही एक दूसरे की वीरता को ललकारने लगे| बातों ही बातों में अर्जुन का क्रोध भड़क उठा| वह किरात पर बाण चलाने लगा|

 

अर्जुन ने किरात पर कई बाण चलाए, पर उसके सभी बाण किरात के शरीर से फल की तरह लग-लग कर नीचे गिर पड़े| वह विस्मित हो उठा, पर साथ ही और भी अधिक क्रुद्ध हो उठा| वह किरात को युद्ध के लिए ललकार कर उस पर बाणों की वर्षा करने लगा| फलत: किरात भी युद्ध के लिए तैयार हो गया| किरात और अर्जुन दोनों में युद्ध होने लगा| अर्जुन के पास युद्ध की जितनी कलाएं थीं, जितने अस्त्र-शस्त्र थे, सबका उसने उपयोग किया, पर किरात का बाल तक बांका नहीं हुआ|

 

यह पहला अवसर था, जब अर्जुन के बाण विफल हुए थे| वह आश्चर्य में डूबकर सोचने लगा – यह किरात कौन है? मेरे बाण क्यों विफल हो गए? कहीं किरात के रूप में भगवान शिव तो नहीं हैं| अर्जुन की आंखें बंद हो गईं| वह हाथ में धनुष-बाण लेकर खड़ा था| वह आंखें बंद करके सोचने लगा – अवश्य किरात के रूप में यह शिवजी ही हैं| मेरे बाण भगवान शंकर को छोड़कर और किसी पर विफल नहीं हो सकते थे|

 

अर्जुन ने आंखें खोलकर देखो, सामने कोई नहीं था| किरात इधर-उधर कहीं भी दिखाई नहीं पड़ रहा था| अर्जुन के मुख से अपने आप ही निकल पड़ा – भगवान शंकर, भगवान आशुतोष !

 

सहसा अर्जुन के गले में एक माला आ गई| यह उन्हीं मालाओं में से एक थी, जिन्हें अर्जुन भगवान के चरणों में चढ़ाया करता था| अर्जुन को विश्वास हो गया कि किरात के रूप में भगवान शिव ही उसके शौर्य की परीक्षा ले रहे थे| अर्जुन का मन शक्ति और श्रद्धा से भर गया| वह पुलकित होकर भगवान शंकर की प्रार्थना करने लगा| भगवान आशुतोष प्रसन्न हो उठे| उन्होंने प्रसन्नता भरे स्वर में कहा, अर्जुन, मैं तुम्हारी वीरता की परीक्षा लेकर परम संतुष्ट हुआ हूं| मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही तुम्हें पाशुपतास्त्र दे रहा हूं| इससे तुम तीनों लोकों को जीत सकोगे|

 

अर्जुन को उद्देश्य पूर्ण हुआ| महाभारत के पन्नों से प्रकट है कि अर्जुन ने भगवान शंकर के दिए हुए अस्त्रों से ही महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की थी| सृष्टि के इतिहास में शौर्य की नैवेद्य से शिवजी को संतुष्ट करने वाला अकेला अर्जुन ही है| अत: उसकी वीरता की कहानी प्रलय की छाती पर भी लिखी रहेगी|

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