Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Mahanta ke Lakshan” , “महानता के लक्षण” Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

महानता के लक्षण

Mahanta ke Lakshan

 

 

एक बालक नित्य विद्यालय पढ़ने जाता था। घर में उसकी माता थी। मां अपने बेटे पर प्राण न्योछावर किए रहती थी, उसकी हर मांग पूरी करने में आनन्द का अनुभव करती। पुत्र भी पढ़ने-लिखने में बड़ा तेज और परिश्रमी था। खेल के समय खेलता, लेकिन पढ़ने के समय का ध्यान रखता। एक दिन दरवाजे पर किसी ने- ‘माई! ओ माई!’ पुकारते हुए आवाज लगाई तो बालक हाथ में पुस्तक पकड़े हुए द्वार पर गया, देखा कि एक फटेहाल बुढ़िया कांपते हाथ फैलाए खड़ी थी। उसने कहा, ‘बेटा! कुछ भीख दे दे। बुढ़िया के मुंह से बेटा सुनकर वह भावुक हो गया और मां से आकर कहने लगा, ‘मां! एक बेचारी गरीब मां मुझे बेटा कहकर कुछ मांग रही है!’ उस समय घर में कुछ खाने की चीज थी नहीं, इसलिए मां ने कहा, ‘बेटा! रोटी-भात तो कुछ बचा नहीं है, चाहो तो चावल दे दो।’ पर बालक ने हठ करते हुए कहा- ‘मां! चावल से क्या होगा? तुम जो अपने हाथ में सोने का कंगन पहने हो, वही दे दो न उस बेचारी को। मैं जब बड़ा होकर कमाऊंगा तो तुम्हें दो कंगन बनवा दूंगा।’ मां ने बालक का मन रखने के लिए सच में ही सोने का अपना वह कंगन कलाई से उतारा और कहा, ‘लो, दे दो’ बालक खुशी-खुशी वह कंगन उस भिखारिन को दे आया। भिखारिन को तो मानो एक खजाना ही मिल गया। कंगन बेचकर उसने परिवार के बच्चों के लिए अनाज, कपड़े आदि जुटा लिए। उसका पति अंधा था। उधर वह बालक पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान हुआ, काफी नाम कमाया। एक दिन वह मां से बोला, ‘मां! तुम अपने हाथ का नाप दे दो, मैं कंगन बनवा दूं।’ उसे बचपन का अपना वचन याद था। पर माता ने कहा, ‘उसकी चिन्ता छोड़। मैं इतनी बूढ़ी हो गई हूं कि अब मुझे कंगन शोभा नहीं देंगे। हां, कलकत्ते केश् तमाम गरीब बालक विद्यालय और चिकित्सा के लिए मारे-मारे फिरते हैं, उनके लिए तू एक विद्यालय और एक चिकित्सालय खुलवा दे जहां नि:शुल्क पढ़ाई और चिकित्सा की व्यवस्था हो’ मां के उस पुत्र का नाम था ईश्वरचन्द्र विद्यासागर।

 

 

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