Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Pasine ki Kamai ka Anand” , “पसीने की कमाई का आनंद” Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

पसीने की कमाई का आनंद

Pasine ki Kamai ka Anand

 

 

रैदास नाम के एक बड़े भगवद्भक्त थे| वे काशी में रहते थे| गंगा के घाट के पास ही उनकी झोंपड़ी थी, जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ रहते थे और झोंपड़ी के बाहर बैठकर जूते गांठते रहते थे| अपनी मेहनत-मजदूरी से उन्हें जो मिल जाता वे उसी में संतोष करते और मस्ती का जीवन बिताते| काम से समय मिलता तो सत्संग में चले जाते| कमाई बड़ी कम थी, पर उसकी उन्हें चिंता न थी| उनकी स्त्री बड़ी भली थी| पति को जो भी मिलता, उसी में खुशी-खुशी गुजर-बसर कर लेती थी|

 

एक दिन एक साधु रैदास के पास आया| उनकी दीनदशा देखकर उसने अपनी झोली में से एक पत्थर निकालकर बोला – रैदास लो, यह पारस पत्थर है| लोहे को सोना बना देता है|

 

इतना कहकर साधु ने लोहे का एक टुकड़ा लिया और सोना बनाकर दिखा दिया|

 

रैदास ने कहा – महाराज, आप अपनी इस नियामत को अपने पास ही रहने दीजिए| मुझे नहीं चाहिए| मैं किसी की दी हुई मदद नहीं लेता| अपनी मेहनत से जितना काम लेता हूं, उसी में अपनी घर-गृहस्थी चला लेता हूं|

 

साधु ने बड़ी ममता से कहा – रैदास, आदमी को अच्छी तरह से रहना चाहिए| देखो तो तुम्हारी कुटिया की क्या हालत हो रही है!

 

रैदास बोले – स्वामीजी हमें अपनी इस जिंदगी से बड़ा सुख-संतोष है| पसीने की कमाई का अपना ही आनंद होता है| वही असली बात है|

 

साधु ने बहुत आग्रह किया, पर रैदास नहीं माने| उन्होंने कहा – स्वामीजी आपको यह पारस किसी को देना ही हो तो राजा को दीजिए| वह बड़ा गरीब है| उसे हर घड़ी रुपए की जरूरत रहती है| या फिर दीजिए गरीब मन वाले उस धनी को, जो रात-दिन पैसे के पीछे पड़ा रहता है|

 

रैदास ने आगे और बात नहीं की| वह जूते गांठने में लग गए| बेचारा साधु अपना-सा मुंह लेकर चला गया|

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