Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Annkut parv va Goverdhan pooja” , “अन्नकूट पर्व व गोवर्धन पूजा” Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

अन्नकूट पर्व व गोवर्धन पूजा

Annkut parv va Goverdhan pooja

 

 

कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानी दीपावली का अगला दिन गोवर्धन पूजन, गौ पूजन के साथ-साथ अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है। अन्नकूट पूजा में भगवान विष्णु अथवा उनके अवतार और अपने इष्ट देवता का इस दिन विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर पूजन किया जाता हैं। इसे छप्पन भोग की संज्ञा भी दी गई हैं। इस दिन सुबह ही नहा धोकर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने इष्टों का ध्यान करते हैं। इसके पश्चात अपने घर या फिर देव स्थान के मुख्य द्वार के सामने गोबर से गोवर्धन बनाना शुरू किया जाता है। इस पर रूई और करवे की सीकें लगाकर पूजा की जाती है। गोबर पर खील, बताशा और शक्कर के खिलौने चढ़ाये जाते हैं। गांव में इस पशुओं की पूजा का भी महत्व है। गांव-गांव में पशु पालक और किसान गोवर्धन पूजा करते हैं। पशुओं को नहला धुलाकर उन्हें सजाया जाता है। गोवर्धन पर्वत की पूजा के बारे में एक कहानी कही जाती है। भगवान कृष्ण अपने गोपी ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो देखा कि वहां गोपियां 56 प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच-गाकर उत्सव मना रही हैं। श्रीकृष्ण के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज वृत्रासुर को मारने वाले तथा मेघों व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होता है। इसे इंद्रोज यज्ञ कहते हैं। इससे प्रसन्न होकर ब्रज में वर्षा होती है, अन्न पैदा होता है। श्रीकृष्ण ने कहा कि इंद्र में क्या शक्ति है, उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसके कारण वषाZ होती है। हमें इंद्र की गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। श्रीकृष्ण की यह बात ब्रजवासियों ने मानी और गोवर्धन पूजा की तैयारियां शुरू हो गई। सभी गोप-ग्वाल अपने अपने घरों से पकवान लाकर गोवर्धन की तराई में श्रीकृष्ण द्वारा बताई विधि से पूजन करने लगे। नारद मुनि भी यहां इंद्रोज यज्ञ देखने पहुंच गए थे। इंद्रोज बंदकर के बलवान गोवर्धन की पूजा ब्रजवासी कर रहे हैं यह बात इंद्र तक नारद मुनि द्वारा पहुंच गई और इंद्र को नारद मुनि ने यह कहकर और डरा भी दिया कि उनके राज्य पर आक्रमण करके इंद्रासन पर भी अधिकार शायद श्रीकृष्ण कर लें। इंद्र गुस्सा गये और मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जा कर प्रलय पैदा कर दें। ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश होने लगी। सभी भयभीत हो उठे। सभी ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में पहुंचते ही उन्होंने सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। वही सब की रक्षा करेंगे। जब सब गोवर्धन पर्वत की तराई मे पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगुली पर उठाकर छाता सा तान दिया और सभी की मूसलाधार हो रही बारिश से बचाया। ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा। यह चमत्कार देखकर इंद्रदेव को अपनी की गलती का अहसास हुआ और वे श्रीकृष्ण से क्षमायाचना करने लगे। सात दिन बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजवासियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का पर्व मनाने को कहा। तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित है।

 

 

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