Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Saccha Yagya” , “सच्चा यज्ञ” Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

सच्चा यज्ञ

Saccha Yagya

 

 

एक बार युधिष्ठिर ने विधि-विधान से महायज्ञ का आयोजन किया। उसमें दूर-दूर से राजा-महाराजा और विद्वान आए। यज्ञ पूरा होने के बाद दूध और घी से आहुति दी गई, लेकिन फिर भी आकाश-घंटियों की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ी। जब तक घंटियां नहीं बजतीं, यज्ञ अपूर्ण माना जाता। महाराज युधिष्ठिर को चिंता हुई। वह सोचने लगे कि आखिर यज्ञ में कौन सी कमी रह गई कि घंटियां सुनाई नहीं पड़ीं। उन्होंने भगवान कृष्ण से अपनी समस्या बताई।

 

कृष्ण ने कहा, ‘किसी गरीब, सच्चे और निश्छल हृदय वाले व्यक्ति को बुला कर उसे भोजन कराएं। जब उसकी आत्मा तृप्त होगी तो आकाश घंटियां अपने आप बज उठेंगी।’ कृष्ण ने ऐसे एक व्यक्ति का पता दिया। धर्मराज स्वयं उसकी खोज में निकले। आखिरकार उन्हें उस निर्धन की कुटिया मिल गई। युधिष्ठिर ने अपना परिचय देते हुए उससे प्रार्थना की, ‘बाबा, आप हमारे यहां भोजन करने की कृपा करें।’

 

पहले तो उसने मना कर दिया लेकिन काफी प्रार्थना करने पर वह तैयार हो गया। युधिष्ठिर उसे लेकर यज्ञ स्थल पर आए। द्रौपदी ने अपने हाथ से स्वादिष्ट खाना बनाकर उसे खिलाया। भोजन करने के बाद उस व्यक्ति ने ज्यों ही संतुष्ट होकर डकार ली, आकाश की घंटियां गूंज उठीं। यज्ञ की सफलता से सब प्रसन्न हुए। युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा, ‘भगवन, इस निर्धन व्यक्ति में ऐसी कौन सी विशेषता है कि उसके खाने के बाद ही यज्ञ सफल हो सका।’

 

कृष्ण ने कहा, ‘धर्मराज, इस व्यक्ति में कोई विशेषता नहीं है। यह गरीब है। दरअसल आपने पहले जिन्हें भोजन कराया वे सब तृप्त थे। जो व्यक्ति पहले से तृप्त हैं, उन्हें भोजन कराना कोई विशेष उपलब्धि नहीं है। जो लोग अतृप्त हैं, जिन्हें सचमुच भोजन की जरूरत है, उन्हें खिलाने से उनकी आत्मा को जो संतोष मिलता है, वही सबसे बड़ा यज्ञ है। वही सच्ची आहुति है। आप ने जब एक अतृप्त व्यक्ति को भोजन कराया तभी देवता प्रसन्न हुए और सफलता की सूचक घंटियां बज गईं।’

 

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