Motivational Story “Kese bana ek Tangewala Arabpati”,”कैसे बना एक तांगेवाला अरबपति” Hindi Motivational Story for, Primary Class, Class 10 and Class 12

कैसे बना एक तांगेवाला अरबपति

Kese bana ek Tangewala Arabpati

महाशय धरमपाल हट्टी(M.D.H), आज ये नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है| “मसाला किंग”(M.D.H) के नाम से मशहूर महाशय जी आज सफलता की बुलंदियों पर हैं, लेकिन इस सफलता के पीछे एक बहुत सघर्ष भरी कहानी है|

इनका जन्म सियालकोट(जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था| ये एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते थे, परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न थी| महाशय जी जब धीरे धीरे बड़े हुए तो स्कूल में दाखिला कराया ये बचपन से ही पढ़ाई में बहुत कमजोर थे पढ़ने लिखने में बिल्कुल मन नहीं लगता था| इनके पिता इनको बहुत समझाते लेकिन महाशय जी बिल्कुल भी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते थे, इसी वजह से पाँचवी कक्षा में वो फेल हो गये और इसी के साथ उन्होनें स्कूल जाना भी छोड़ दिया| पिता ने इनको इसके बाद एक बढ़ई की दुकान पर काम सीखने के लिए भेज दिया| कुछ दिन बाद इनका मन बढ़ई के काम में नहीं लगा तो छोड़ दिया| धीरे धीरे समय आगे बढ़ता गया, इसी बीच महाशय जी 15 साल की उम्र तक करीब 50 काम बदल चुके थे| उन दिनों सियालकोट लाल मिर्च के लिए बहुत प्रसिद्ध था, यही सोचकर महाशय जी के पिताजी ने एक छोटी सी मसाले की दुकान करा दी धीरे धीरे व्यापार अच्छा बढ़ने लगा| लेकिन उन दिनों आज़ादी का आंदोलन अपने चरम पे था| 1947, में जब देश आज़ाद हुआ तो सियालकोट पाकिस्तान का हिस्सा बन चुका था और वहाँ रह रहे हिंदू असुरक्षा महसूस कर रहे थे और दंगे भी काफ़ी भड़क चुके थे इसी डर से उन्हें सियालकोट छोड़ना पड़ा| महाशय जी के अनुसार उन दिनों स्थिति बहुत भयावह थी, चारों तरफ मारामारी मची हुई थी| इन्हें भी अपना घर बार छोड़ कर भागना पढ़ा| बड़ी ही दिक्कत और मुश्किलों से वो नानक डेरा(भारत) पहुचे पर अभी वो शरणार्थी थे अपना सब कुछ लूट चुका था| इसके बाद स्पारिवार कई मीलों चलकर ये अमृतसर पहुचे| दिल्ली में इनके एक रिश्तेदार रहते थे, यही सोच कर महाशय जी करोलबाग देल्ही आ गये| उस समय उनके पास केवल 1500 रुपये थे कोई काम धंधा था नहीं| उन्होनें कुछ पैसे जुटाकर एक तांगा-घोड़ा खरीद लिया| और इस तरह वो बन गये एक तांगा चालक|

लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था, करीब २ महीने तक उन्होने कुतुब रोड दिल्ली पर तांगा चलाया| इसके बाद उन्हें लगा की वो ये कम नहीं कर पाएँगे| लेकिन मसाले के सिवा वो कोई दूसरा कम जानते भी नहीं थे, कुछ सोचकर उन्होने घर पे ही मसाले का काम करने लगे| बाज़ार से मसाला लाकर घर पर ही उसे कुटते थे और बाज़ार में बेचते थे| उनकी ईमानदारी और मसालों की शुद्धता की वजह से उनका कारोबार धीरे धीरे बढ़ने लगा| डिमांड ज़्यादा हुई तो मसाले घर ना पीसकर एक व्यापारी के यहाँ चक्की पर पिसवाते थे| एक दिन जब व्यापारी से मिलने गये तो उन्होने देखा कि वह मसालों में मिलावट करता था ये देखकर महाशय जी को मन ही मन बहुत दुख हुआ और उन्होने खुद की मसाला पीसने की फॅक्टरी लगाने की सोची|

किर्तिनगर में इन्होने पहली फैक्टरी लगाई और उस दिन के बाद महाशय जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक पूरे विश्व भर में अपने कारोबार को फैलाया|आज .M.D.H. एक बड़ा ब्रांड बन चुका है और पूरे विश्व में फैला हुआ है| आज महाशय जी बहुत बड़े अरबपति उद्धयोग के मलिक हैं|

महाशय जी की इस छवि से हटकर एक रूप और है वो है समाज सेवा| पूरे भारत में कई जगह उनके द्वारा संचालित विद्धयालय और अस्पताल हैं|

कहा जाता है क़ि “इंसान अपनी परिस्थितियों का नहीं अपने फ़ैसलों और कर्मों का परिणाम होता है”, ऐसा ही कुछ सीखने को मिलता है महाशय जी के जीवन से|

तो आओ मित्रों हम भी इस महान पुरुष के जीवन से प्रेरणा लेकर सफल बनने का प्रयास करते हैं

 

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