Motivational Story “Swami Vivekanand”,”स्वामी विवेकानंद ” Hindi Motivational Story for, Primary Class, Class 10 and Class 12

स्वामी विवेकानंद

Swami Vivekanand

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी जी का प्रेरणादायी जीवन आज भी youth world को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है । उनका पूरा जीवन एक सफल मार्गदर्शक है , ऐसे महापुरषों के जीवन की एक भी बात अगर हम लोगों ने अपने जीवन में ढाल ली तो सफलता स्वयं आपके कदम चूमेगी।

मैं यहाँ स्वामी के जीवन से जुड़ी कुछ घटनाओं के बारे में लिख रहा हूँ और आशा है की आप लोगों को जरूर पसंद आएगी।

सुख और दुःख एक सिक्के के पहलू हैं , बात उन दिनों की है जब स्वामी जी अपने जीवन के कठिन दौर से गुजर रहे थे।

एक स्वामी विवेकानंद जी की माता जी बहुत बीमार थी वह मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर लेटी हुई थी , स्वामी जी के पास बहुत ज्यादा धन नहीं था जिससे वो अपनी माँ का अच्छा इलाज कराते और न ही इतना था कि अच्छा भोजन का इंतजाम करते। खुद की इस हालत पे स्वामी जी को बहुत गुस्सा आया कि जिस माँ ने मुझे पाल पोष कर इतना बड़ा किया और मैं आज उसके लिए कुछ नहीं कर पाया हूँ , स्वामी जी का कलेजा भर आया।

गुस्से में स्वामी जी अपने गुरु रामकृष्णन परमहंस जी के पास पहुंचे और कहा- ये जो पूजा और चिंतन हम करते हैं सब व्यर्थ है , इन सबका क्या औचित्य है ? मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में निस्वार्थ भगवान की प्रार्थना की है लेकिन बदले में मुझे क्या मिला ? आज जब मेरी माँ , जिसने मुझे अपने लहू से सींचा है मैं उसकी कोई मदद नहीं कर पा रहा हूँ , ये सब क्या है प्रभु ?

राम कृष्ण परमहंस जी शान्ति से विवेकानंद जी की सारी बात सुन रहे थे , आज पहली बार अपने शिष्य को टूटते हुए देख रहे थे, मन ही मन बहुत दुःख भी हुआ| परमहंस जी के आश्रम में माँ काली का एक छोटा सा मंदिर था । उन्होंने विवेकानंद जी से कहा कि अगर उन्हें भगवान से कोई शिकायत है या वो काली माँ से कुछ मांगना चाहते है तो मंदिर में जाएँ और जो चाहे मांग लें ।

ये सुनकर विकानन्द जी तीव्र गति से मंदिर में गए और बोले – “हे माँ मुझे बल दे , बुद्धि दे ,विद्या दे “, ऐसा कहकर स्वामी जी मंदिर से वापस आये । गुरु जी ने पूछा क्या तुमने भगवान से धन मांग लिया? स्वामी जी अवाक् से रह गए बोले महाराज धन मांगना तो मैं भूल ही गया । गुरु जी – ठीक है , फिर से जाओ , स्वामी जी फिर से मंदिर में गए और बोले – “हे माँ मुझे बल दे , बुद्धि दे ,विद्या दे “, ऐसा कहकर फिर वापस आ गए । गुरु जी ने फिर पूछा – धन मांग लिया ?

विवेकानंद – नहीं ,, गुरूजी – फिर से मंदिर में जाओ और माँ से धन मांगो । विवेकानंद फिर से मंदिर गए और बोले – “हे माँ मुझे बल दे , बुद्धि दे ,विद्या दे ” ये देखकर श्री राम कृष्ण परमहंस जी ने स्वामी जी को गले से लगा लिया उनकी आँखे चमक रही थी । बोले- तुम पूछ रहे थे कि पूजा करके क्या मिला ? आज मैंने जो तुम्हारा स्वरूप देखा है ये उसी निःस्वार्थ पूजा का फल है । तुम चाहकर भी भगवान से धन नहीं मांग पाये ये तुम्हारी आत्म शक्ति को दर्शाता है और अगर तुम आज भगवान से धन या स्वार्थिक वस्तु मांग लेते तो शायद आज तुम्हारा और मेरा अंतिम मिलन होता मैं आज के बाद तुमसे कभी नहीं मिलता । यही तुम्हारी शक्ति है नरेंद्र (स्वामी विवेकानद के बचपन का नाम) कि तुम निस्वार्थ दुनिया के मार्गदर्शक बनोगे ।

फल की इच्छा से की गयी पूजा का कोई औचित्य नहीं है|

आगे चलकर अपनी इन्हीं आत्मशक्तियों के बल पर स्वामी जी ने न सिर्फ लोगों का मार्गदर्शन किया बल्कि जीवन का सत्य लोगों को बताया , आज अगर स्वामी जी के जीवन की 1 भी अच्छाई हमने जीवन में उतार ली तो जीवन में हमें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता

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