Hindi Poem of Raskhan “ Mohan ho-ho-ho-ho hori, “मोहन हो-हो, हो-हो होरी” Complete Poem for Class 10 and Class 12

मोहन हो-हो, हो-हो होरी

 Mohan ho-ho-ho-ho hori

 

मोहन हो-हो, हो-हो होरी ।

काल्ह हमारे आँगन गारी दै आयौ, सो को री ॥

अब क्यों दुर बैठे जसुदा ढिंग, निकसो कुंजबिहारी ।

उमँगि-उमँगि आई गोकुल की , वे सब भई धन बारी ॥

तबहिं लला ललकारि निकारे, रूप सुधा की प्यासी ।

लपट गईं घनस्याम लाल सों, चमकि-चमकि चपला सी ॥

काजर दै भजि भार भरु वाके, हँसि-हँसि ब्रज की नारी ।

कहै ’रसखान’ एक गारी पर, सौ आदर बलिहारी ॥

 

 

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