Hindi Essay on “Ramprasad Bismil”, “रामप्रसाद बिस्मिल ” Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation Classes Exams.

रामप्रसाद बिस्मिल 

Ramprasad Bismil

                 भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी के अलावा रामप्रसाद बिस्मिल एक बेहतरीन कवि, शायर, कुशल बहुभाषाभाषी अनुवादक, इतिहासकार होने के साथ ही साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उपनाम था, जो कि उर्दू भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है आत्मिक रूप से आहत। रामप्रसाद बिस्मिल ने राम और अज्ञात नाम से भी लेखन किया। 

                स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था। उनके पिता एक रामभक्त थे, जिसके कारण उनका नाम र से रामप्रसाद रख दिया गया। बिस्मिल की जन्मकुंडली को देखकर ज्योतिष ने यह भविष्यवाणी की थी, कि – ” यद्यपि सम्भावना बहुत कम है, किंतु यदि इस बालक का जीवन किसी प्रकार बचा रहा, तो इसे चक्रवर्ती सम्राट बनने से दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं पाएगी।” 

               शिक्षा : हिन्दी की वर्णमाला पढ़ने में बिस्मिल ने बचपन में रूचि नहीं दिखाई जिलके बाद उनकी शुरुआती शिक्षा उर्दू में प्रारंभ की गई। मिडिल स्कूल की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद 

उन्होंने अंग्रेजी पढ़ना शुरू किया। इसके साथ ही अपने एक पुजारी  पड़ोसी द्वारा उन्हें पूजा विधि का ज्ञान प्राप्त हुआ, और उनकी विद्वता का प्रभाव भी बिस्मिल के व्यक्तित्व प पड़ा। उन्होंने अपने जीवन में ब्रम्हचर्य का पालन किया और व्यायाम आदि को अपनाकर बुरी लतों को त्याग दिया। इसके बाद उनका मन पढ़ाई में पहले से बेहतर लगने लगा और वे अंग्रेजी में पांचवे स्थान पर आ गए। 

               विद्रोह : 19 वर्ष की आयु में बिस्मिल ने क्रांति के रास्ते पर अपना पहला कदम रखा। अपने 11 वर्ष के क्रांतिकारी जीवन में उन्होंने कई किताबें भी लिखीं और उन्हें प्रकाशित कर, प्राप्त रकम का प्रयोग उन्होंने हथियार खरीदने में किया। अपने भाई परमानंद की फांसी का समाचार सुनने के बाद बिस्मिल ने ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा की। मैनपुरी षड्यंत्र में शाहजहांपुर के 6 युवक पकड़ाए, जिनके लीडर रामप्रसाद बिस्मिल थे, लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं लग पाए। इसका षड्यंत्र का फैसला आने के बाद से बिस्मिल 2 साल तक भूमिगत रहे। और एक अफवाह के तरह उन्हें मृत भी मान लिया गया। इसके बाद उन्होंने एक गांव में शरण ली और अपना लेखन कार्य किया। 

9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी नामक स्थान पर देशभक्तों ने रेल विभाग की ले जाई जा रही संगृहीत धनराशि को लूटा। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिजोरी को तोड़कर आक्रमणकारी दल चार हजार रुपये लेकर फरार हो गए। इस डकैती में अशफाकउल्ला, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त, रामप्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे। काकोरी षड्यंत्र मुकदमे ने काफी लोगों का ध्यान खींचा। 

                  उपसंहार : सभी प्रकार से मृत्यु दंड को बदलने के लिए की गई दया प्रार्थनाओं के अस्वीकृत हो जाने के बाद बिस्मिल अपने महाप्रयाण की तैयारी करने लगे। अपने जीवन के अंतिम दिनों में गोरखपुर जेल में उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी। फांसी के तख्ते पर झूलने के तीन दिन पहले तक वह इसे लिखते रहे। इस विषय में उन्होंने स्वयं लिखा है-

‘आज 16 दिसम्बर, 1927 ई. को निम्नलिखित पंक्तियों का उल्लेख कर रहा हूं, जबकि 19 दिसंबर, 1927 ई. सोमवार (पौष कृष्ण 11 संवत 1984) को साढ़े छ: बजे प्रात: काल इस शरीर को फांसी पर लटका देने की तिथि निश्चित हो चुकी है। अतएव नियत सीमा पर इहलीला संवरण करनी होगी।’

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