Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Bhasmasur”,”भस्मासुर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

भस्मासुर

 Bhasmasur

 

सुनते थे कभी

किस्से-कहानियों में ,

प्रत्यक्ष हो गया आज –

देख लो चारों ओर

त्राहि-त्राहि  ,

आग के गोले ,बारूद का धुआँ

और मृत्यु का भयावह नृत्य!

इन्सान को भेड़-बकरियां बनाने के लिये,

हाँक कर अपने ढंग से चलाने के लिये ,

घूम रहा है भस्मासुर!

भयावह यंत्रणाओं से पगलाई स्त्रियाँ

और लगातार नोचा जाता हताश बचपन ,

विक्षिप्त हो उड़ा रहे  चीथड़े ,

विस्फोट कर अपना ही तन

कि एक बार ही मुक्ति मिल जाये

यों तड़प-तड़प मरने से!

*

किसकी निर्मिति?

उत्तरदायी कौन?

इन्सानी ख़ून का स्वाद

लगाया किसने उसकी ज़ुबान पर ।

किसने? क्यों?

ऊपर से मुग़ालता पाले

बैठे रहे चैन से

कि कृतज्ञ रहेगा हमारा ,

दाता का अनुगामी बना ?

पर वह जान चुका है अपनी सामर्थ्य,

तुम्हारी सीमायें , 

और अब दाँव आज़माया है तुम्हीं पर

क्योंकि वही स्वाद है  तुम्हारे ख़ून में भी!

स्वार्थी कृपा,

और कुपात्र का दान

बना जो अभिशाप ,

सारी धरती के लिये!

कैसे  निराकरण?

कहाँ समाधान?

प्रकृति का नियम –

जो बोया है काटोगे  ,

दिया है पाओगे ,

किया है सामने आयेगा ।

तुम्हारा ही रचा

यह भस्मासुर

तुल गया तुम्हारे सर्वनाश के लिये!

भागोगे कहाँ

बच कर

कहाँ -कहाँ भागोगे!

पीछा कर रहा है निरंतर!

भस्मासुर ,

कितने रूप ,कितने नाम!

कहाँ है समाधान?

यहां रेखायें सरल  नहीं होतीं,

घूम जाती हैं  वर्तुलाकार

अनादि-अनन्त!

ऐकान्त कुछ नहीं  , सब अनेकान्त

निरंतर आन्दोलित ,आवर्तित ,घूर्णित

नये-नये रूपाकार ढालती!

घूमती रेखाओं में

नये वृत्त खींचो ,

शुरू होने दो एक नया नाच ,

ऐसा

कि  उसका हाथ और उसी का सिर!

और भस्मीभूत हो जाये ,

भस्मासुर!

 

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