Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Teri Muktia”,” तेरी मुक्ति” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

तेरी मुक्ति

 Teri Mukti

 

मेरे स्वर तब तक न थमेंगे ,जब तक जीवन बीत न जाये

तेरी मुक्ति तभी है जिस दिन मेरी वाणी गीत न गाये!

और नहीं तो बँधे रहो ,

मेरे स्वर के बंधन चंचल हैं!

बरबस मन में उतर चलेंगे ,

मेरे अंतर्गीत विकल हैं!

तुम न रहो तो शायद फिर ,

सारा संसार विजन बन जाये!

तुम न सुनो तो हृत्तंत्री की

तान न फिर शायद जग पाये

तुम न सुनो तो संभव है ,

मेरी वाणी फिर गीत न गाये!

तुम न लखो तो शायद यह अस्तित्व ,

जगत में ही घुल जाये!

चलती रहें उजाड़ हवायें ,

जीवन की आशायें बिखरा ,

छायेगी अनजान बने से

सपनों पर बेसुध सी तंद्रा!

अब के बाद न जाने कितने

दिन गुमसुम से ढल जायेंगे

जाने कितने आज सदा को ,

इसी तरह बन कल जायेंगे!

दृष्टि उठेगी महाशून्य में ,

सम्मुख कोई चित्र न होगा!

अब के बाद अकेलेपन का

शायद कोई मित्र न होगा!

दूर रहो तो एक मिलन की

चाह जगाते रहना प्रिय तुम ,!

मेरे स्वर की दुनियां में ,

मृदु राग जगाते रहना प्रिय तुम!

यों ही रहना -कहना है जब तक ये साँसें रूठ न जायें

तेरी मुक्ति तभी है जिस दिन मेरी वाणी गीत न गाये!

 

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