Hindi Poranik Katha “Kapati Shakuni ”, ”कपटी शकुनि” Hindi Dharmik Katha for Class 9, Class 10 and Other Classes

कपटी शकुनि

Kapati Shakuni 

 शकुनि गांधारराज सुबल का पुत्र था| गांधारी इसी की बहन थी| वह गांधारी के स्वभाव से विपरीत स्वभाव वाला था| जहां गांधारी के स्वभाव में उदारता, विनम्रता, स्थिरता और साधना की पवित्रता थी, वहीं शकुनि के स्वभाव में कुटिलता, दुष्टता, छल और दुराचार का अधिकार था| वह जीवन के उदात्त मूल्यों की तरफ कभी भी आकृष्ट नहीं हुआ| उसके सामने तो अपना या इससे आगे अपने संबंधियों का स्वार्थ रहता था, तभी तो वह अपने और अपने भांजों के स्वार्थ के कारण पांडवों की महान विपत्तियों का कारण बना| दुर्योधन को वह बहुत चाहता था| उसकी ओर से इसी ने युधिष्ठिर के साथ जुआ खेला था| पासे फेंकने में इसकी बराबरी और कोई नहीं कर सकता था| अपने इस अपूर्व कौशल से ही इसने युधिष्ठिर को एक भी दांव जीतने का अवसर नहीं दिया| हर एक दांव युधिष्ठिर हारते जाते| उन्होंने अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया, तब भी इस दुष्ट ने उन्हें इनकी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए उकसाया| युधिष्ठिर ने द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया| जब युधिष्ठिर सबकुछ हार गए, तो उन्हें वचनबद्ध होकर वनवास को जाना पड़ा| वहां अनेकानेक आपत्तियों का सामना पाण्डवों ने किया| कौरवों ने अपने भाइयों की पराजय पर खुशी मनाई| इन सबमें गर्व से फूलने वाले दो व्यक्ति थे| एक था दुर्योधन और दूसरा था शकुनि|

शकुनि ने महाभारत में युद्ध किया था| वह बड़ा अच्छा अश्वारोही था और गांधार के श्रेष्ठ अश्वों का एक रिसाला उसके पास था| सहदेव के साथ उसका युद्ध हुआ, जिसमें सहदेव ने उसे मार गिराया| उसके भाई और पुत्र आदि भी सभी मारे गए|

शकुनि सदा दुर्योधन की हां में हां मिलाना जानता था| कभी भी नेक सलाह उसने दुर्योधन को नहीं दी| कहा जाता है कि वह हस्तिनापुर में किसी राजनितिक उद्देश्य के कारण ही रहता था| उसी कारण संभवतया गांधारराज सुबल ने अपनी पुत्री गांधारी का विवाह अंधे धृतराष्ट्र के साथ किया था|

कुछ लोग तर्क रखते हैं कि आखिर तो शकुनि कौरवों का मामा था, फिर यदि उसने उनके भले के लिए कोई बुरा काम किया, तो वह एक संबंधी के लिए स्वाभाविक ही है| कौन ऐसा होगा, जो अपने संबंधी के भले के लिए प्रयत्न नहीं करेगा? लेकिन जहां तक जीवन की उदात्त चेतना का संबंध है, इस तरह के तर्क निराधार ही प्रमाणित होते हैं?, क्योंकि शकुनि ने छल और कपट का आश्रय लेकर उस पक्ष का साथ दिया था, जो अपने भाइयों के प्रति पूरी तरह अन्याय करने पर तुला बैठा था| जिन पुत्रों को स्वयं माता गांधारी ने आशीर्वाद नहीं दिया था, उनको शकुनि ने अन्याय की ओर अधिकाधिक प्रेरित किया| शकुनि का ऐसा करना यही व्यक्त करता है कि उसके हृदय में न्याय और सत्य की प्रेरणा नहीं थी| वह तो एक कुटिल व्यक्ति था जो अपने स्वार्थ के कारण जीवन की उदात्त गरिमा को ठुकराकर कितने भी नीचे गिर सकता था| महाभारत के पात्रों में जहां एक तरफ जीवन की श्रेष्ठता और उदात्त गरिमा बोलती है, उसके विपरीत शकुनि जैसे व्यक्तियों में श्रुद्रत्व का भी रूप में हमें मिल जाता है| कौरव-पाण्डवों के गृह-कलह का बहुत कुछ उत्तरदायित्व उसी पर है| यदि वह कुछ और ऊंचा उठकर सोच पाता तो पाण्डव भी तो उसके भांजे थे, उनके प्रति वह इस प्रकार विद्वेष नहीं रखता| उसी के कारण साध्वी द्रौपदी का भरी सभा में अपमान हुआ| बाद में भी जब महाभारत का हाहाकार चारों ओर फैल चुका था, उसने अपनी कुटिलता नहीं छोड़ी थी| दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से युधिष्ठिर कोपकड़कर ले जाने की प्रार्थना की थी| वह चाहता था कि शकुनि मामा फिर युधिष्ठिर के साथ जुआ खेलकर उन्हें हरा दे और इस प्रकार उनको बनवास के लिए भेज दे, जिससे यह सारा युद्ध ही समाप्त हो जाए| उस समय भी शकुनि इसके लिए तैयार हो गया था| इस तरह देखा जाए तो पाण्डवों के कष्टों के लिए तो शकुनि उत्तरदायी है ही, बल्कि कौरवों के नाश का भी एकमात्र कारण वही है| यदि जाए के समय वह छल नहीं दिखाता तो पता नहीं कौरव-कुल का इस प्रकार भीषण अंत होता या नहीं| शास्त्र में भी कहा गया है कि मातुल सर्वनाश का कारण होता है|

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.