Hindi Short Story, Moral Story “  Kadhputli ka khel”, ”कठपुतली का खेल” Hindi Motivational Story for Primary Class, Class 9, Class 10 and Class 12

कठपुतली का खेल

 Kadhputli ka khel

 

 आज मीना,सोमा और सोमा की माँ के साथ मेला गयी है।

 सोमा की माँ- सोमा, मीना…जल्दी से इधर आओ….वहां देखो।

 मीना- ‘कठपुतली का खेल’ चाची जी चलिए ना, कठपुतली का खेल देखते हैं।

 कठपुतली वाला- आइये…आइये…आइये देखिये कठपुतली का खेल …आइये भाइयो बहिनों और प्यारे बच्चों।

 अब शुरु होने जा रहा है- कठपुतली का खेल।

“बात है बहुत पुरानी लेकिन बात बड़ी अलबेली।

 ये है दो पक्की सहेलियां चम्पा और चमेली ।।”

लाल घाघरे वाली कठपुतली का नाम है- चम्पा , और हरे घाघरे वाले का नाम है- चमेली।

“एक बार एक पेड़ के नीचे दोनों रही थी नाच…।धिन-धिन-धिन तक ।”

मीना- सोमा ये दोनों कठपुतलियाँ नाचते हुए कितनी सुन्दर लग रही है ना।

“एक बार एक पेड़ के नीचे दोनों रही थी नाच

 तभी पेड़ से गिरे संतरे वो भी पूरे पांच।”

धिन…धिन …तक ..धिन …तक…धां।

 चमेली- चंपा,तुम दो संतरे रख लो तीन मैं रख लेती हूँ।

 चम्पा- क्यों? चमेली, तुम दो संतरे लो मैं तीन लूंगी।

 मैं तीन लूंगी….मैं…मैं तीन लूंगी…मैं….मैं….मैं….मैं..।

 (सभी दर्शक खिलखिला उठते है)

“चंपा और चमेली मैं मैं मैं मैं चिल्लाई

 बड़ा कठिन था प्रश्न संतरे कैसे बांटे जाएँ?

तभी अचानक उनको सूझा बढ़िया एक उपाय

 क्यों न पाँचों संतरे का रस निकला जाए

….रस निकाला…..रस निकाला…रस निकाला….

रस निकाल के बाँट लिया दोनों ने आधा-आधा

 कभी नहीं झगडेंगी फिर किया दोनों ने वादा-वादा।”

कठपुतली वाला दर्शकों से एक सवाल करता है,

‘चंपा और चमेली में बंटवारा हुआ ठीक,

आपको इनकी कहानी से मिलती है क्या सीख?

मीना- हमें इस कहानी से ये सीख मिलती है कि हमें आपस में झगड़ना नहीं चाहिए।

 कठपुतली वाला- शाबाश! बिटिया, क्या नाम है तुम्हारा?

मीना- जी मीना।

 कठपुतली वाला- मीना बेटी, इस कहानी से हमें और भी एक शिक्षा मिलती है वो ये कि किसी भी समस्या का अगर रचनात्मक हल सोचा जाए तो वो समस्या दूर हो सकती है।

 इसी बात पे सब बजाओ ताली।

(तालियों की गडगडाहट होती है)

मीना- सोमा, कितना अच्छा होता ना अगर हमें भी कठपुतलियों का खेल दिखाना आता।…काश हमें भी कोई सिखा सकता?

कठपुतली वाला-मैं तुम्हे सिखा सकता हूँ।…हाँ मैंने तुम दोनों की बातें सुनी। मैं सिखलाऊंगा तुम्हें।

 सोमा की माँ- बही साहब, आप तो शायद किसी दुसरे गाँव के है ना। और यार मेला तो चार दिन में ख़त्म हो जाएगा। फिर आप इन्हें कैसे?…..।

कठपुतली वाला- बहिन जी, कठपुतली का खेल सीखने में ज्यादा से ज्यादा चार घंटे का समय लगता है। आप इन दोनों बच्चियों को किसी भी दिन दोपहर के समय ले आईयेगा मैं इन्हें सिखा दूँगा।

 चूँकि शनिवार को स्कूल में खेल दिवस है। जिसकी तैयारियां कल से शुरु होंगी….और खेल दिवस की तैयारियों के चलते किसी भी दिन चार घंटे का समय एक साथ नहीं निकाल पायेंगे।

 सोमा की माँ, कठपुतली वाले को आने का आश्वासन दे सोमा और मीना को लेके वापस चली आयीं।

 घर पहुँचकर मीना ने सारी बात अपने माँ और बाबा को बताई। जिसे सुनके मीना की माँ बोली, ‘मीना बेटी, मुझे पूरा यकीन है कि तुम इस समस्या का कोई न कोई रचनात्मक हल जरूर सोच लोगी।’

उस रात नीद में मीना के कानों में उस कठपुतली वाले के शब्द कान में गूंजते रहे, “किसी भी समस्या का अगर रचनात्मक हल सोचा जाए तो वो समस्या दूर हो सकती है।”

तभी मीना की माँ उसे उठा देती है।

 मीना सोमा से मिलने उसके घर जाती है।

 मीना- सोमा अब हम दोनों कठपुतली का खेल सीख सकेंगे।….शुक्रवार तक किसी भी दिन चार घंटे नहीं निकल सकते लेकिन हम अगले चार दिनों में रोज़ एक-एक कर चार घंटे तो निकाल ही सकते हैं।

 सोमा के माँ मीना को उसके रचनात्मक हल के लिए शाबाशी देती है।

 और फिर अगले चार दिन तक सोमा और मीना ने कठपुतली का खेल सीखा।` कठपुतली वाला मीना और सोमा को, जाते-जाते उपहार में देता है-कठपुतली चम्पा और चमेली।  

 

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