Hindi Short Story, Moral Story “  Murgabhai aur Koveram ki katha”, ”मुर्गाभाई और कौवेराम की कथा” Hindi Motivational Story for Primary Class, Class 9, Class 10 and Class 12

मुर्गाभाई और कौवेराम की कथा

 Murgabhai aur Koveram ki katha

 

 संसार के सबसे बड़े 3 देवताओं में से एक ब्रह्माजी धरती पर भ्रमण करने निकले थे। सभी जीवचर उनके दर्शनों के अभिलाषी थे। इस कारण जैसे ही उनके आने की सूचना मिली, संसार के सभी प्राणी उनके जोरदार स्वागत की तैयारी में लग गए। कोई सुंदर सुगंधित मालाएं गूथने लगा तो कोई मीठे-मीठे फल-कंद और शहद एकत्रित करने लगा।

 जंगली जानवरों को इस बात की भनक लगी तो वे भी ब्रह्माजी के स्वागत की तैयारी करने लगे। जंगल के राजा शेरसिंह ने आदेश पारित कर दिया कि जंगल के सभी जानवरों को ब्रह्माजी के स्वागत के लिए अनिवार्यत: उपस्थित रहना पड़ेगा।

 समय कम था इस कारण शेरसिंह ने सभी बड़े जानवरों को बुलाकर समझाया कि एक जानवर दूसरे जानवर को और दूसरा जानवर तीसरे जानवर को इस तरह सूचित करे कि जंगल के छोटे से छोटे जानवर को भी यह समाचार प्राप्त हो जाए कि ब्रह्माजी का स्वागत करना है और उपस्थिति अनिवार्य है।

 ब्रह्माजी सुबह 6 बजे निकलने वाले थे इससे शेरसिंह ने सबको 5.30 बजे हाजिर होकर पंक्तिबद्ध होकर उनका स्वागत करने की योजना तैयार कर ली थी। सभी जानवर एक-दूसरे को सूचना दे रहे थे ताकि कोई छूट न जाए।

 यथासमय ब्रह्माजी अपने रथ पर सवार होकर जंगल से गुजरे। सड़क के दोनों ओर जानवर हाथों में माला और फल लेकर कतारबद्ध खड़े थे। उनका स्वागत करने लगे। इस तरह रंगारंग और भव्य स्वागत होता देखकर ब्रह्माजी गदगद हो गए। जंगल में मंगल ही मंगल हो रहा था। उन्हें फूलों की मालाओं से लाद दिया गया था। खुशी के मारे वे मालाएं उतार-उतारकर जानवरों के बच्चों की ओर फेंकने लगे।

 अचानक उन्होंने वनराज से पूछा कि ‘राजा साहब, सभी जानवर तो यहां दिखाई पड़ रहे हैं, परंतु मुर्गा भाई और कौवाराम नहीं दिख रहे?‘

शेरसिंह ने देखा कि मुर्गा और कौवा सच में गायब थे। ब्रह्माजी ने इसे अपना अपमान समझा और जोर से दहाड़े कि तुरंत दोनों को मेरे सामने हाजिर किया जाए।

 डर के मारे शेरसिंह की घिग्गी बंध गई। वह डर गया कि कहीं ब्रह्माजी उससे राजपाट न छीन लें। आनन-फानन में हाथी को भेजकर कौवे और मुर्गे को बुलाकर ब्रह्माजी के समक्ष पेश कर दिया गया।

 ब्रह्माजी ने दोनों को आग्नेय दृष्टि से देखा और प्रश्न दागा कि ‘जब जंगल के सभी जानवर मेरे स्वागत में हाजिर हैं तो आप क्यों नहीं आए?‘

मुर्गा बोला कि ‘नहीं आए, तो नहीं आए मेरी मर्जी, तुम कौन होते हो पूछने वाले? सुबह नींद ही नहीं खुली।‘

कौआ बोला कि ‘आप कौन हैं? कहां से आए हैं? मैं क्यों आपका स्वागत करूं?‘

इतना अपमान सुन ब्रह्माजी का भेजा खराब हो गया तथा एक मंत्र फूंका और कौआरामजी और मुर्गाभाई जहां खड़े थे, वहीं खड़े रह गए। हाथ-पैर वहीं जम गए। हिलना-डुलना बंद हो गया। दोनों डर गए और क्षमा मांगने लगे- ‘त्राहिमाम, गलती हो गई सरकार, क्षमा करें, हमारे बाल-बच्चे मर जाएंगे।‘

ब्रह्माजी टस से मस नहीं हुए व कहा कि ‘उद्दंडों को दंड दिया ही जाना चाहिए‘, ऐसा कहकर वे आगे बढ़ने लगे।

‘नहीं प्रभु, हमें माफ करो। आप जो भी प्रायश्चित करने को कहेंगे, हम तैयार हैं किंतु हमें उबारो प्रभु‘, दोनों फफक-फफककर रोने लगे।

‘ठीक है आज से तुम सुबह 4 बजे उठकर संसार के सभी प्राणियों को सूचित करोगे कि भोर हो गई है उठ जाओ। इसके लिए तुम्हें कुकड़ूं कूं की सुरीली तान छेड़ना पड़ेगी।‘

 ‘इतना बड़ा दंड?‘, मुर्गे ने आंसू बहाते हुए पूछा।

‘नहीं, यह बड़ा दंड नहीं है, लोग तुम्हारी प्रशंसा करेंगे। स्कूलों में भी तुम्हारे चर्चे होंगे, किताबों में तुम्हारे गीत पढ़े जाएंगे।‘

 ‘मुर्गा बोला हुआ सबेरा, अब तो आंखें खोलो‘ अथवा ‘मुर्गे की आवाज सुनी, तो मुन्ना भैया जाग उठे‘, जैसे मीठे गीत बच्चे बड़े मजे से गाएंगे।

‘जो आज्ञा भगवन्‘ मुर्गे की आंखों में आंसू आ गए। भगवान ने फिर मंत्र फूंका और वह अपनी पूर्वावस्था में आ गया।

 इधर कौआ भी पश्चाताप कर रहा था। ब्रह्माजी बोले कि ‘आज के बाद तुम जल्दी उठकर लोगों के घर की छतों अथवा मुंडेरों पर बैठोगे और जिनके यहां मेहमान आने वाले होंगे, उनके यहां कांव-कांव करके पूर्व सूचना दोगे ताकि उस घर का मालिक मेहमान के स्वागत के लिए खाने-पीने के सामान तथा सब्जी-भाजी इत्यादि की व्यवस्था कर सके। अथवा यदि मेहमान ‘मान न मान, मैं तेरा मेहमान‘ हो तो सुबह से घर में ताला लगाकर भाग सकें।‘

तब से ही आज तक ये बेचारे अपना धर्म निभा रहे हैं।  

 

 

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