Hindi Short Story, Moral Story “ Viklang”, ”विकलांग” Hindi Motivational Story for Primary Class, Class 9, Class 10 and Class 12

विकलांग

 Viklang

 

 

 कक्षा में एक नया प्रवेश हुआ… पूर्णसिंह। उसकी विकृत चाल देखकर बच्चे हंसने लगे। किसी ने कहा लंगड़ूद्दीन, किसी ने तेमूरलंग तो किसी ने कह दिया- वाह नाम है पूर्णसिंह और है बेचारा अपूर्ण। मतलब यह कि अध्यापक के आने से पहले तक उपस्थित विद्यार्थियों ने उसको परेशान करने में किसी प्रकार की कमी नहीं बरती।

कक्षाध्यापक ने भी अपना कर्तव्य निभाते हुए उस विद्यार्थी से परिचय कराते हुए सहानुभूति ‍रखने की अपील कर दी। वे बोले- देखो बच्चों, पूरन हमारी कक्षा का नया विद्यार्थी है। वह आप लोगों की तरह सामान्य नहीं है, उसे चिढ़ाना मत बल्कि यथासंभव सहायता करना।

हाय बेचारा- पास बैठे नटखट विराट ने व्यंग्य कर दिया।

पूरन को अच्छा नहीं लगा। वह तपाक से बोल पड़ा- न मैं बेचारा हूं और न किसी की दया के अधीन। मैं सिर्फ एक पैर से विकलांग हूं, मानसिक रूप से विकलांग कदापि नहीं। विकलांगता मेरे काम में आड़े नहीं आती और अपने सारे काम मैं खुद ही कर सकता हूं।

कक्षाध्यापक ने संभलते हुए कहा- बुरा मत मानो बेटे, मैंने तो ऐसे ही कह दिया था। फिर शायद उसका दिल रखने के लिए यह कह दिया। वस्तुत: हम सब विकलांग हैं। आज की दुनिया विकलांग की दुनिया है। कक्षा के एक विद्यार्थी स्पर्श को यह आरोप पचा नहीं। उसने खड़े होते हुए अपनी आपत्ति दर्ज कराई। क्षमा कीजिए आचार्यजी! जब हमारे सभी अंग सुरक्षित हैं तो हम विकलांग कैसे हो गए?

मैं समझाता हूं। इसे व्यापक अर्थ में लीजिए। हम हर काम में दूसरे का सहारा खोजते हैं। देखो बच्चों, जो दूसरों से दुर्व्यवहार करते हैं, वे अपाहिज हैं, क्योंकि वे सद्व्यवहार करने जैसे आवश्यक अंग से वंचित हैं। कक्षाध्यापक ने समझाने का प्रयास किया। विद्यार्थी उनकी बात से सहमत नहीं थे।

पार्थिव ने खड़े होकर अपना पक्ष रखा- मैं कभी किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं करता इसलिए विकलांग कहलाने से बच गया।

पहले बात तो पूरी सुन लो, कहते हुए आचार्यजी ने पार्थिव को बैठा दिया, जो अकारण दूसरों को तंग करते हैं, दूसरे का अधिकार छीनते हैं वे भी वस्तुत: अपाहिज होते हैं।

मैं किसी को तंग नहीं करती, न किसी का अधिकार छीनती हूं इसलिए मैं विकलांग नहीं हुई- विदिता ने कहा।

अभी मेरी बात समाप्त नहीं हुई। वे लोग भी विकलांग हैं, जो मिथ्या भाषण करते हैं, झूठ बोलते हैं, जिनकी कथनी व करनी में अंतर होता है- कक्षाध्यापक ने आगे कहा।

कम से कम मैं तो ऐसा नहीं, विशेष ने विरोध जताया।

यही नहीं, जो दूसरो को दुखी देखकर या दुख देकर प्रसन्नता का अनुभव करते हैं, वे भी विकलांग हुए- आचार्यजी ने अपना क्रम जारी रखा।

क्या आचार्यजी! आप एक के बाद एक सभी को लपेट रहे हैं- मुंह लगे विद्यार्थी सार्थक ने कहना चाहा।

उसे अनसुना करते आचार्यजी ने अपनी धुन में बोलते गए- विकलांग तो वे भी हैं, जो सामने होते हुए भी अन्याय को सहन करते हैं और मौन ओढ़ लेते हैं, क्योंकि वे मानवीय कर्तव्य भूल जाते हैं जिसमें कहा गया है कि अन्याय देखने वाला भी अपराधी होता है- आचार्यजी बोले।

 लेकिन आचार्यजी! यह…, मोहन ने कहना चाहा तो आचार्यजी ने टोक दिया- मैंने कहा न, इसे व्यापक अर्थ में लीजिए। हम भ्रष्टाचार को अपने सामने घटित होते हुए देखते हैं, मगर उसके विरुद्ध आवाज उठाने की हिम्मत नहीं दर्शाते… क्या यह हमारी मानसिक विकलांगता नहीं? आचार्यजी ने प्रश्न किया।

इसका मतलब बुरे गुण वाला भी विकलांग है या जो अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता वह भी? विराट ने जानना चाहा।

मैंने कहा न, हम सब विकलांग हैं, क्योंकि किसी न किसी दुर्गुण से ग्रसित हैं। किसी सामान्य गुण की कमी या गुण होते हुए भी उचित अवसर पर इसका उपयोग नहीं करना भी विकलांगता है- आचार्यजी ने जवाब दिया।

आचार्यजी- सौम्य ने कुछ कहना चाहा तो उसे चुप कराते हुए आचार्यजी बोले- जिसका एकाध अंग खराब होता है वह शारीरिक रूप से विकलांग कहलाता है लेकिन वे जो सद्व्यवहार से दूर रहते हैं मानसिक रूप से विकलांग कहे जा सकते हैं- आचार्यजी ने समझाया।

आचार्यजी, आप बुरा नहीं मानें तो एक बात पूछूं? आपने जो व्याख्या की उसके अनुसार तो क्या आप भी विकलांग नहीं हुए? विराट ने पूछा।

एक पल के लिए आचार्यजी असहज दिखे फिर संभलकर बोले- हां, मैं समाज से अलग कैसे रह सकता हूं। कहने को मैं शिक्षक हूं, पर मेरी भी सीमाएं हैं। कहने का ‍तात्पर्य यह है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी कारण से अगर अपनी क्षमता या कर्तव्य का पालन नहीं कर पाता, वह विकलांग ही कहलाएगा।

आचार्यजी! पहले हम मानसिक रूप से विकलांग का अर्थ पागल समझते थे- विशेष बोला।

वह उसका संकुचित अर्थ है, व्यापक अर्थ में वे सभी विकलांग की श्रेणी में रखे जा सकते हैं, जो अपने सामान्य धर्म का पालन नहीं करते।

विषय की बोझिलता विद्यार्थियों के चेहरे से दिखाई देने लगी थी। तो आचार्यजी ने पूछ लिया- अब अगर कोई मेरी बात से सहमत नहीं हो तो हाथ खड़े करें। 

 

 

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