Ramayan Katha, Hindi Poranik Katha “Ram Laxman Bandhan me”, ”राम लक्ष्मण बन्धन में ” Hindi Dharmik Katha for Class 9, Class 10 and Other Classes

राम लक्ष्मण बन्धन में – रामायण कथा 

Ram Laxman Bandhan me – Ramayan Katha 

 

 जब हर्षोन्मत्त वानरों का तुमुलनाद सुन कर रावण को आश्चर्य हुआ और आशंका ने उसे आ घेरा। उसने तत्काल मन्त्रियों से कहा, वानरसेना में इतना उत्साह कैसे आ गया? मेघनाद ने तो राम और लक्ष्मण का वध कर दिया था। शीघ्र पता लगाकर बताओ, इसका क्या कारण है? कहीं भरत तो अयोध्या से विशाल सेना लेकर नहीं आ गया? आखिर ऐसी कौन सी बात हुई है जो वानर सेना राम की मुत्यु का दुःख भी भूलकार गर्जना कर रही है।

 तभी एक गुप्तचर ने आकर सूचना दी कि राम और लक्ष्मण मरे नहीं हैं, वे नागपाश से मुक्त होकर युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।

 यह सुनते ही रावण का मुख फीका पड़ गया। उसने क्रोधित होकर पराक्रमी धूम्राक्ष को आज्ञा दी, हे वीरश्रेष्ठ धूम्राक्ष! तुमने अब तक अनेक बार अद्भुत पराक्रम प्रदर्शित किया है। तुम सहस्त्रों वीरों को अकेले मार सकते हो। एक विशाल सेना लेकर जाओ और राम-लक्ष्मण सहित शत्रु सेना का वध करो।

 रावण की आज्ञा पाते ही शूल, गदा, तोमर, भाले, पट्टिश आदि शस्त्रों से युक्त राक्षसों की विशाल सेना लेकर धूम्राक्ष रणभूमि में जा पहुँचा। इस विशाल वाहिनी को देख कर वानर सेना घोर गर्जना करती हुई उस पर टूट पड़ी। धूम्राक्ष कंकपत्रों वाले तीक्ष्ण बाणों से वानरों को घायल करने लगा। वे भी राक्षसों के वार बचाकर बड़े-बड़े शिलाखण्ड ले आकाश में उड़ कर उन पर फेंकने लगे। आकाश को उद्यत राक्षसी सेना को अपने प्राण बचाने कठिन हो गये। फिर भी राक्षस सेना का एक भाग अपने प्राणों की चिन्ता न करके बाणों, त्रिशूलों आदि से वानरों का लहू बहा रहा था। चारों ओर रक्त की नदियाँ बहने लगीं। जिधर देखो उधर ही राक्षसों और वानरों के रुण्ड-मुण्ड दिखाई देते थे। कानों के पर्दों को फाड़ने वाला चीत्कार और हाहाकार सुनाई दे रहा था। रणोन्मत्त धूम्राक्ष हताहत वीरों के शरीरों को रौंदता हुआ अपने अग्नि बाणों से वानर सेना को भस्मीभूत कर रहा था। उसके आक्रमण की ताव न लाकर वानर सेना इधर-उधर भागने लगी। अपनी सेना की यह दुर्दशा देख कर हनुमान ने क्रोध से भरकर एक विशाल शिला उखाड़ी और लक्ष्य तानकर धूम्राक्ष की ओर फेंक दी। उस शिला को अपनी ओर आते देख वह फुर्ती से रथ से कूद पड़ा। इस बीच में रथ चूर-चूर हो चुका था और घोड़े तथा सारथी मर चुके थे। राक्षस सेनापति को इस प्रकार बचता देख हनुमान का क्रोध और भी भड़क उठा। उन्होंने दाँतों, नाखूनों से उनके और धूम्राक्ष के बीच में आने वाले राक्षस समुदाय का विनाश करके मार्ग साफ कर लिया। जब उसने हनुमान को भयंकर रूप से अपनी ओर आते देखा तो लोहे के काँटों से भरी हुई गदा उठाकर उनके सिर पर दे मारी। हनुमान ने वार बचा कर एक भारी शिला उठाई और आकाश में उड़ कर धूम्राक्ष को दे मारी। इससे उसके शरीर की समस्त हड्डियाँ टूट गईं और वह पृथ्वी पर गिरकर यमलोक सिधार गया। उसके मरते ही राक्षस भी भाग छूटे।

 रावण ने जब धूम्राक्ष की मृत्यु का समाचार सुना तो वह क्रोध से पागल हो गया। उसके नेत्रों से चिंगारियाँ निकलने लगीं। उसने वज्रदंष्ट्र को बुलाकर आज्ञा दी कि वह राम-लक्ष्मण तथा हनुमान सहित वानरसेना का वध करके अपने शौर्य का परिचय दे। वज्रदंष्ट्र जितना वीर था, उससे अधिक मायावी था। वह अपनी भीमकर्मा पराक्रमी सेना लेकर दक्षिण द्वार से चला। युद्धभूमि में पहुँचते ही उसने अपने सम्मुख अंगद को पाया जो अपनी सेना के साथ उससे युद्ध करने के लिये तत्पर खड़ा था। वज्रदंष्ट्र को देखते ही वानर सेना किचकिचा कर राक्षसों पर टूट पड़ी। दोनों ओर से भयंकर मारकाट मच गई। सम्पूर्ण युद्धभूमि रुण्ड-मुण्डों, हताहत सैनिकों तथा रक्त के नालों एवं सरिताओं से भर गई। रक्त सरिताओं में नाना प्रकार के शस्त्र-शस्त्र, कटे हुये हाथ तथा मस्तक छोटे-छोटे द्वीपों की भाँति दिखाई देने लगे। अंगद तथा वानर सेनापतियों द्वारा बार-बार की जाने वाली सिंहगर्जना ने राक्षस सैनिकों का मनोबल तोड़ दिया। जब उन्हें अपने चारों ओर राक्षसों के कटे हुये अंग दिखाई देने लगे तो वह अपने प्राणों के मोह से रणभूमि से पलायन करने लगे।

 अपनी सेना को मरते-कटते और कायरों की तरह भागते देख वज्रदंष्ट्र दुगने पराक्रम और क्रोध से युद्ध करने लगा। उसने तीक्ष्णतर बाणों का प्रयोग करके वानरों को घायल करना आरम्भ कर दिया। क्रुद्ध वज्रदंष्ट्र के भयानक आक्रमण से पीड़ित होकर वानर सेना भी इधर-उधर छिपने लगी। उनकी यह दशा देखकर अंगद ने उस राक्षस सेनापति को ललकारा, वज्रदंष्ट्र! तूने बहुत मारकाट कर ली। तेरा अंत समय आ गया है। अब मैं तुझे धूम्राक्ष के पास भेजता हूँ। यह कहकर अंगद उससे जाकर भिड़ गये। दोनों महान योद्धा मस्त हाथियों की भाँति एक दूसरे पर प्रहार करने लगे। दोनों ही रक्त से लथपथ हो गये। फिर अवसर पाकर अंगद ने तलवार से वज्रदंष्ट्र का सिर काट डाला। अपने सेनापति के मरते ही राक्षस सेना मैदान से भाग खड़ी हुई।

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