Ancient India History Notes on “Government of India Act 1935” History notes in Hindi for class 9, Class 10, Class 12 and Graduation Classes

भारत सरकार अधिनियम- 1935

Government of India Act 1935

भारत सरकार अधिनियम- 1935 के पारित होने से पूर्व इससें ‘साइमन आयोग रिपोर्ट’, ‘नेहरू समिति की रिपोर्ट’, ब्रिटेन में सम्पन्न तीन गोलमेज सम्मेलनों में हुये कुछ विचार-विमर्शों से सहायता ली गयी। तीसरे गोलमेज सम्मेलन के सम्पन्न होने के बाद कुछ प्रस्ताव ‘श्वेत पत्र’ नाम से प्रकाशित हुए, जिन पर बहस के लिए ब्रिटेन के दोनों सदनों एवं कुछ भारतीय प्रतिनिधियों ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। अन्ततः इस रिपोर्ट के आधार पर 1935 ई. का अधिनियम पारित हुआ। 1935 ई. का अधिनियम काफ़ी लम्बा एवं जटिल था। इसे 3 जुलाई, 1936 को आंशिक रूप से लागू किया गया, किन्तु पूर्णरूप से चुनावों के बाद अप्रैल, 1937 में यह लागू हो पाया।

अधिनियम की विशेषताएँ

इस अधिनियम में कुल 321 धारायें एवं 10 सूचियों का समावेश था, अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार थीं-

केंद्र में द्वैध शासन की व्यवस्था की गयी। संघीय विषयों को दो भागों में संरक्षित एवं हस्तान्तरित में विभाजित किया गया। संरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर-जनरल कुछ पार्षदों की सहायता से करता था, जो संघीय व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। हस्तान्तरित विषयों का प्रकाशन गवर्नर-जनरल व मंत्रियों को सौंपा गया। मंत्री विधान मण्डल के सदस्यों में से चुने जाते थे तथा उसके प्रति उत्तरदायी होते थे।

इस अधिनियम में एक ‘अखिल भारतीय संघ’ की व्यवस्था की गयी। इस संघ का निर्माण ब्रिटिश भारत के प्रान्तों, चीफ़ कमिश्नर प्रान्तों व देशी रियासतों से मिलाकर होने था, किन्तु यह व्यवस्था लागू न हो सकी, क्योंकि प्रस्तावित संघ में भारतीय प्रान्तों का सम्मिलित होना अनिवार्य था, परन्तु भारतीय रियासतों का सम्मिलित होना वैकल्पिक था।

प्रान्तों में द्वैध शासन समाप्त कर प्रान्तीय स्वायत्ता की व्यवस्था की गयी।

प्रान्तीय विधान मण्डलों का विस्तार किया गया, प्रान्तों में 11 में से 6 विधान मण्डलों में दो सदनों की व्यवस्था की गयी। केन्द्रीय विधान मण्डल के सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गयी।

प्रान्तों में मताधिकार का विस्तार किया गया। साम्प्रदायिक निर्वाचन को और बढ़ाकर इसे हरिजनों तक विस्तृत किया गया।

विवादों के निपटारे के लिए संघीय न्यायालय अंतिम न्यायालय नहीं था। अन्तिम न्यायालय ‘प्रिवी कौंसिल’ थी।

बर्मा (वर्तमान म्यांमार) को भारत से अलग कर दिया गया।

गृह सरकार में महत्तवपूर्ण परिवर्तन हुए, जिन विषयों पर गवर्नर अपने मंत्रियों के सहयोग से कार्य करता था, उस पर उन्होंने भारतमंत्री के अधिकार को समाप्त कर दिया और साथ ही ‘इण्डियन कौंसिल’ को समाप्त कर दिया गया।

अधिनियम के तहत एक संघीय न्यायालय एवं ‘रिजर्व बैंक ऑफ़ इण्डिया’ की स्थापना की गयी।

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसे ‘अनेक ब्रेकों वाली परन्तु इन्जन रहित मशीन’ की संज्ञा दी। मदन मोहन मालवीय ने इसे ‘बाह्य रूप से जनतंत्रवादी एवं अन्दर से खोखला’ कहा। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने इसे ‘द्वैध शासन पद्धति से भी बुरा एवं बिल्कुल अस्वीकृत’ बताया। नेहरू जी ने इसे ‘दासता का नया चार्टर’ कहा।

दोष

‘भारत सरकार अधिनियम-1935’ के महत्त्वपूर्ण दोष इस प्रकार थे-

इस अधिनियम से गवर्नर-जनरल एवं गवर्नर के अधिकारों में और वृद्धि हो गयी। संघीय शासन व्यवस्था दोषपूर्ण थी, क्योंकि इसमें भारतीय राजाओं को अधिक स्थान दिया गया था और संघीय न्यायालय को अन्तिम न्यायालय नहीं माना गया। साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को और बढ़ाया गया। द्वैध शासन प्रान्तों से हटाकर केंद्र में स्थापित कर दिया गया। इस अधिनियम में कहने के लिए तो ‘प्रान्तीय स्वायत्ता’ की बात की गयी, पर वास्तविक रूप से अब समस्त अधिकार गवर्नर के पास ही थे।

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