Ancient India History Notes on “Treaty of lahore”, “लाहौर की सन्धि” History notes in Hindi for class 9, Class 10, Class 12 and Graduation Classes

लाहौर की सन्धि

Treaty of lahore

लाहौर की सन्धि अंग्रेज़ों और सिक्खों के मध्य 9 मार्च, 1846 ई. को हुई थी। इस सन्धि से लॉर्ड हार्डिंग ने लाहौर के आर्थिक साधनों को नष्ट कर दिया। लाहौर की सन्धि के अनुसार कम्पनी की सेना को दिसम्बर, 1846 तक पंजाब से वापस हो जाना था, परन्तु हार्डिंग ने यह तर्क दिया कि महाराजा दलीप सिंह के वयस्क होने तक सेना का वहाँ रहना अनिवार्य है। उसने सामन्तों को प्रलोभन तथा शक्ति के द्वारा इस बात को मनवाने का प्रयास किया।

सिक्खों की हार

वर्ष 1845-1846 ई. में हुए आंग्ल-सिक्ख युद्ध का परिणाम अंग्रेज़ों के पक्ष में रहा। इस युद्ध के अंतर्गत मुदकी, फ़िरोजशाह, बद्धोवाल तथा आलीवाल की लड़ाइयाँ लड़ी गईं। ये चारों लड़ाइयाँ निर्णायंक नहीं थी। किन्तु पाँचवीं लड़ाई- ‘सबराओ की लड़ाई’ (10 फ़रवरी, 1846 ई.) निर्णायक सिद्ध हुई। लालसिंह और तेज़ सिंह के विश्वासघात के कारण ही सिक्खों की पूर्णतया हार हुई, जिन्होंने सिक्खों की कमज़ोरियों का भेद अंग्रेज़ों को दे दिया था। हार के पश्चात सिक्खों ने 9 मार्च, 1846 ई. को ‘लाहौर की सन्धि’ पर हस्ताक्षर किए।

सन्धि की शर्तें

सन्धि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज़ों को दलीप सिंह ने सतलुज नदी के पार के प्रदेश तथा सतलुज नदी एवं व्यास नदी के मध्य स्थित सभी दुर्गों को देना भी स्वीकार कर लिया। इसके अलावा महाराजा ने डेढ़ करोड़ रुपये युद्ध हर्जाना के रूप में देना तथा अपनी सेना को 12,000 घुड़सवार एवं 20,000 पैदल सैनिकों तक सीमित रखना स्वीकार कर लिया। अंग्रेज़ों ने अल्पायु दलीप सिंह को महाराजा, रानी ज़िन्दा कौर (बीबी साहिबा) को संरक्षिका एवं लाल सिंह, जो ज़िन्दा रानी का प्रेमी था, को वज़ीर के रूप में मान्यता दी तथा सर हेनरी लॉरेन्स को लाहौर का रेजीडेन्ट नियुक्त किया। इसके अलावा 11 मार्च को सम्पन्न हुई एक पूरक सन्धि के द्वारा अंग्रेज़ी सेना को दिसम्बर, 1846 ई. तक लाहौर में रख दिया गया।

हार्डिंग का तर्क

‘लाहौर की सन्धि’ से लॉर्ड हार्डिंग ने लाहौर के आर्थिक साधनों को नष्ट कर दिया। इस सन्धि के अनुसार कम्पनी की सेना को दिसम्बर, 1846 तक पंजाब से वापस हो जाना था, परन्तु हार्डिंग ने यह तर्क दिया कि महाराजा के वयस्क होने तक सेना का वहाँ रहना अनिवार्य है। उसने सामन्तों को प्रलोभन तथा शक्ति के द्वारा इस बात को मनवाने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप 22 दिसम्बर, 1846 ई. को ‘भैरोवाल की सन्धि’ हुई, जिसके अनुसार दलीप सिंह के संरक्षण हेतु अंग्रेज़ी सेना का पंजाब में प्रवास मान लिया गया। 20 अगस्त, 1847 को महारानी ज़िन्दा कौर को दलीप सिंह से अलग कर 48,000 रुपये की वार्षिक पेन्शन पर शेखपुरा भेज दिया गया।

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.