Hindi Poranik Katha “Jab Varun ne apne putra ki kathor pariksha li ”, ”जब वरुण ने अपने पुत्र की कठोर परीक्षा ली” Hindi Dharmik Katha for Class 9, Class 10 and Other Classes

जब वरुण ने अपने पुत्र की कठोर परीक्षा ली

Jab Varun ne apne putra ki kathor pariksha li 

एक बार वरुण के पुत्र भृगु के मन में परमात्मा को जानने की अभिलाषा जाग्रत हुई। उनके पिता वरुण ब्रम्ह निष्ठ योगी थे। अत: भृगु ने पिता से ही अपनी जिज्ञासा शांत करने का विचार किया। वे अपने पिता के पास जाकर बोले- ‘भगवन्!

मैं ब्रम्ह को जानना चाहता हूं। आप कृपा कर मुझे ब्र-तत्व समझाइए’। वरुण बोले- ‘जिससे सभी का पालन-पोषण होता है, वही ब्रम्ह है।’ भृगु ने सोचा- अन्न ही ब्रम्ह है। अत: उन्होंने अन्न उपजाया और कई वर्ष तप कर पिता के पास गए और कहा – ‘प्रभु!’ अन्न को समझा, लेकिन शांति नहीं मिली।’ वरुण बोले- ‘तुम तप द्वारा ब्रम्ह-तत्व को समझने का प्रयास करो। तब भृगु ने सोचा-प्राण ही ब्रम्ह है। अत: उन्होंने प्राणायाम किया।

इससे शरीर तो तेजस्वी हो गया किंतु फिर भी शांति प्राप्त नहीं हुई। पुन: वे पिता के पास गए और अपनी जिज्ञासा दोहराई – ‘ब्रम्ह तत्व का रहस्य बताइए।’ पिता ने कहा- ‘तू तप कर।’ भृगु ने मन को संयम में रखने व पवित्र करने की साधना की किंतु शांति इस बार भी दूर ही रही।

इस बार पिता ने कहा- ‘विज्ञान ही ब्रम्ह है।’ तब भृगु ने निश्चय किया कि विज्ञान स्वरूप जीवात्मा ही ब्रम्ह है। उन्होंने निरंतर साधना की। जब इससे भी शांति नहीं मिली, तो फिर पिता के पास गए। जब पिता को विश्वास हो गया कि पुत्र ब्रम्ह विद्या के ज्ञान का अधिकारी हो गया है, तब उन्होंने भृगु को ब्रrातत्व का ज्ञान दिया, जिससे भृगु को दिव्य आनंद की प्राप्ति हुई।

तैतरीय उपनिषद के इस प्रसंग से प्रेरणा मिलती है कि सच्च गुरु बिना पात्रता का विचार किए किसी शिष्य को ज्ञान नहीं देता। ज्ञान प्राप्त करने का सच्च अधिकारी वही है, जो निरहंकार भाव से गुरु की आज्ञा का पालन करे।

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