Indian Geography Notes on “Narmada River”, “नर्मदा नदी” Geography notes in Hindi for class 9, Class 10, Class 12 and Graduation Classes

नर्मदा नदी

Narmada River

लम्बाई     1310 किमी

राज्य     गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र

उद्गम स्थल     विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी शृंखला में अमरकंटक नामक स्थान

नर्मदा मध्य भारत के मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। महाकाल पर्वत के अमरकण्टक शिखर से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है। इसकी लम्बाई प्रायः 1310 किलोमीटर है। यह नदी पश्चिम की तरफ जाकर खम्बात की खाड़ी में गिरती है। इस नदी के किनारे बसा शहर जबलपुर उल्लेखनीय है. इस नदी के मुहाने पर डेल्टा नहीं है। जबलपुर के निकट भेड़ाघाट का नर्मदा जलप्रपात काफी प्रसिद्ध है। इस नदी के किनारे अमरकंटक, नेमावर, शुक्लतीर्थ आदि प्रसिद्ध तीर्थस्थान हैं जहाँ काफी दूर-दूर से यात्री आते रहते हैं। नर्मदा नदी को ही उत्तरी और दक्षिणी भारत की सीमारेखा माना जाता है।

उद्गम एवं मार्ग

नर्मदा नदी भारत में विंध्याचल और सतपुड़ाthe ganga of mp is Narmada nadi hindu called ma पर्वतश्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर मध्यप्रदेश के अमरकंटक नामक स्थान से निकलती है। यह विंध्याचल और सतपुड़ा के बीचोबीच पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होती है तथा मंडला और जबलपुर से होकर गुजरती है। उद्गम से लेकर मुहाने तक इसकी कुल लंबाई प्रायः 1310 किलोमीटर है। यह सागरतल से 3000 फीट की ऊँचाई पर स्थित अमरकंटक (स्थिति: 22 डिग्री 41 मिनट उत्तरी अक्षांश तथा 81 डिग्री 48मिनट पूर्वी देशान्तर) नामक स्थान के एक कुंड से निकलती है। यह कुंड मंदिरों के समूहों से घिरा है। रीवा जिले में 40 मील बहने के बाद यह रामनग की ओर बहती है। मंडला के बाद उत्तर की ओर एक सँकरा चाप बनाती हुई यह जबलपुर की ओर मुड़ जाती है। इसके बाद 30 फीट ऊँचे धुँआधार नामक प्रपात को पार कर यह दो मील तक एक संकरे मार्ग से होकर बहने के बाद जलोढ़ मिट्टी के उर्वर मैदान में प्रवेश करती है, जिसे “नर्मदाघाटी” कहते हैं। यह घाटी विंध्य और सातपूड़ा पहाड़ियों के मध्य में स्थित है। जबलपुर और होशंगाबाद के बीच इसके किनारे 40फ़ तक ऊँचे हैं। इसी बीच में एक 340फ़ ऊँचा प्रपात भी है। पहाड़ियों से बाहर आने के बाद पुन: यह एक खुले मैदान में प्रवेश करती है। इसी स्थान पर आगे ओमकारेश्वर एवम् महेश्वर नामक नगर इसके किनारे बसे है। यहाँ उत्तरी किनारे पर कई मंदिर, महल एवं स्नानघाट बने हुए हैं। इसके बाद यह भरुच पहुँच कर अंत में खंभात की खाड़ी में गिर जाती है।

नर्मदा नदी का अपवाहक्षेत्र लगभग 36,000 वर्ग मील है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ बंजार, शेर और शक्कर, तवा, गंजाल और छोटा तवा आदि हैं, जो क्रमश: मंडला, नरसिंहपुर एवं होशंगाबाद जिले में इससे मिलती हैं। यह मुहाने से 30 मील अंदर तक 70 टन के जहाजों के चलाने योग्य रहती है। ज्वर का प्रभाव इसमें 55 मील अंदर तक रहता है। किनारे ऊँचे-ऊँचे होने के कारण यह सिंचाई के अयोग्य है। महाभारत और रामायण ग्रंथों में इसे “रीवां” के नाम से पुकारा गया है, अत: यहाँ के निवासी इसे गंगा से भी पवित्र मानते हैं। लोग ऐसा मानते हैं कि साल में एक बार गंगा स्वयम् एक काली गाय के रूप में आकर इसमें स्नान करती एवं अपने पापों से मुक्त हो श्वेत होकर लौटती है।

हिन्दू धर्म में महत्व

नर्मदा, समूचे विश्व में दिव्य व रहस्यमयी नदी है, इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है। इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक (जिला शहडोल, मध्यप्रदेश जबलपुर-विलासपुर रेल लाईन-उडिसा मध्यप्रदेश ककी सीमा पर) के मैकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा १२ वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया। महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया। इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में १०,००० दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है :’

प्रलय में भी मेरा नाश न हो। मैं विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी प्रसिद्ध होऊँ,यह अवधि अब समाप्त हो चुकी है। मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो। विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है। कई लोग जो इस रहस्य को नहीं जानते वे दूसरे पाषाण से निर्मित शिवलिंग स्थापित करते हैं ऐसे शिवलिंग भी स्थापित किये जा सकते हैं परन्तु उनकी प्राण-प्रतिष्ठा अनिवार्य है। जबकि श्री नर्मदेश्वर शिवलिंग बिना प्राण के पूजित है। मेरे (नर्मदा) के तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें।

सभी देवता, ऋ़षि मुनि, गणेश, कार्तिकेय, राम, लक्ष्मण, हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियॉं प्राप्त की। दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर तीर्थ स्थापित है। इस तीर्थ पर (अकाल पड़ने पर ) ऋषियों द्वारा तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा १२ वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की। तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे (नर्मदा के )तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। इस आदित्येश्वर तीर्थ पर हमारा आश्रम अपने भक्तों के अनुष्ठान करता है।

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