Hindi Short Story, Moral Story “  Sadhu ki sadhuta”, ” साधु की साधुता” Hindi Motivational Story for Primary Class, Class 9, Class 10 and Class 12

साधु की साधुता

 Sadhu ki sadhuta

 

 पुराने समय की बात है। संत रामदास चाफल से सातारा जा रहे थे। साथ में दत्तूबुवा भी थे।

 रास्ते में जाते समय दहेगांव आने पर दत्तूबुवा बोले – महाराज, कुछ खाने की व्यवस्था करने जा रहा हूं।

 रास्ते में उन्होंने सोचा कि लौटने में देर हो सकती है, इस कारण वे समीप के खेत से ज्वार के चार भुट्टे तोड़ लाए।

 जब उन्होंने भुट्टों को भूंजना शुरू किया तो धुआं निकलता देख खेत का मालिक वहां आ पहुंचा। उसे गुस्सा आया और उसने हाथ के डंडे से रामदास स्वामी को मारना शुरू किया।

 दत्तूबुवा के मन में विचार आया कि वे प्रतिकार करें, किंतु रामदासजी ने वैसा न करने का इशारा किया। थोड़ी देर बाद उन्हें गालियां देता हुआ पाटिल लौट गया।

 दूसरे दिन वे लोग सातारा पहुंचे। समर्थ रामदास जी की पीठ पर डंडे के निशान देख लोगों में काना-फूसी होनी लगी।

 छत्रपति शिवाजी ने जब इस संबंध में स्वामीजी से पूछा, तो उन्होंने पाटिल को बुलवाने को कहा। पाटिल वहां उपस्थित हुआ और जब उसे मालूम हुआ कि जिसे उसने कल पीटा था, वह तो राजा शिवाजी के गुरु थे, तब वह बेहद डर गया कि पता नहीं उसे कौन-सा दंड मिलेगा।

 शिवाजी बोले – महाराज, इसे क्या दंड दूं?

तब पाटिल स्वामीजी के चरणों में गिर पड़ा और उसने क्षमा मांगी।

 रामदास बोले – राजा, इसने कोई गलत काम नहीं किया है। हमारी मानसिक शांति की परीक्षा पाटिल के अलावा और कोई नहीं कर पाया, इस कारण इसे कीमती वस्त्र देकर इसका सम्मान करना चाहिए। इसका दंड यही है।

 शिवाजी को समझते देर नहीं लगी कि साधु और आम आदमी में क्या फर्क होता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि साधु अगर अपनी साधुता छोड़ दे तो वह साधु नहीं रह जाता।

 अपने गुरु पर शिवाजी को बहुत गर्व हुआ।  

 

 

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