Ancient India History Notes on “Battle of Kannauj”, “कन्नौज का युद्ध” History notes in Hindi for class 9, Class 10, Class 12 and Graduation Classes

कन्नौज का युद्ध

Battle of Kannauj

चौसा युद्ध जीतने के एक साल बाद  फिर दोनों  कन्नौज के मैदान में आमने-सामने हुए| बिलग्राम या कन्नौज का युद्ध 17 मई, 1540 ई. को लड़ा गया । शेरशाह ने 5 भागों में सेना को विभक्‍त करके मुगलों पर आक्रमण कर दिया ।

जिस रणनीति को अपनाकर पानीपत के प्रथम युद्ध में अफगान की शक्‍ति को समाप्त कर दिया उसी नीति को अपनाकर शेरशाह ने हुमायूँ की शक्‍ति को नष्ट कर दिया । मुगलों की सेना चारों ओर से घिर गयी और पूर्ण पराजय हो गयी । हुमायूँ और उसके सेनापति आगरा भाग गये । इस युद्ध में शेरशाह के साथ ख्वास खाँ, हेबत खाँ, नियाजी खाँ, ईसा खाँ, केन्द्र में स्वयं शेरशाह, पार्श्‍व में बेटे जलाल खाँ और जालू दूसरे पार्श्‍व में राजकुमार आद्रित खाँ, कुत्बु खाँ, बुवेत हुसेन खाँ, जालवानी आदि एवं कोतल सेना थी । दूसरी और हुमायूँ के साथ उसका भाई हिन्दाल व अस्करी तथा हैदर मिर्जा दगलात, यादगार नसरी और कासिम हुसैन सुल्तान थे । इस युद्ध मे फिर से शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हराया व भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया |

 इस युद्ध की सफलता के बाद शेर ख़ाँ ने सरलता से आगरा और दिल्ली पर फिर से अधिकार लिया। इस तरह से हिन्दुस्तान की राजसत्ता एक बार फिर से अफ़ग़ानों के हाथ में आ गई। शेरशाह से परास्त होने के उपरान्त हुमायूँ सिंध चला गया, जहाँ उसने लगभग 14 वर्ष तक घुमक्कड़ों जैसे निर्वासित जीवन व्यतीत किया।

 

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.