Indian Geography Notes on “Himalaya Resources”, “हिमालय के संसाधन” Geography notes in Hindi for class 9, Class 10, Class 12 and Graduation Classes

हिमालय के संसाधन

Himalaya Resources

हिमालय की आर्थिक परिस्थितियाँ इस विभिन्न परिस्थिति वाले विस्तृत और विषम क्षेत्र के सीमित संसाधनों के अनुरूप हैं। यहाँ की मुख्य गतिविधि पशुपालन है, लेकिन वनोपज का दोहन और व्यापार भी महत्त्वपूर्ण है। हिमालय में प्रचुर आर्थिक संसाधन हैं। इनमें उपजाऊ कृषि योग्य भूमि, विस्तृत घास के मैदान व वन, खनन योग्य खनिज भंडार और आसानी से दोहन योग्य जलविद्युत शक्ति शामिल हैं। पश्चिमी हिमालय में सबसे उत्पादक कृषि योग्य भूमि कश्मीर घाटी, कांगड़ा सतलुज नदी के बेसिन और उत्तराखंड में गंगा व यमुना नदियों के कगारी क्षेत्र के सीढ़ीदार खेतों में है। इन क्षेत्रों में चावल, मक्का, गेहूँ, ज्वार-बाजरा का उत्पादन होता है। मध्य हिमालय में नेपाल में दो-तिहाई कृषि योग्य भूमि तराई और इससे लगे मैदानी क्षेत्र में है। इस भूमि में देश के कुल चावल उत्पादन का अधिकांश हिस्सा पैदा होता है। इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में मक्का, गेहूँ, आलू और गन्ने की भी खेती की जाती है।

हिमालय क्षेत्र के अधिकांश फलों के बगीचे कश्मीर घाटी और हिमालय प्रदेश की कुल्लू घाटी में स्थित हैं। सेब, आडू, नाशपाती और चेरी की बड़े पैमाने पर खेती होती है, जिनकी भारतीय नगरों में भारी माँग है। कश्मीर में डल झील के किनारे अंगूर के बाग़ हैं, जहाँ अच्छे क़िस्म के अंगूर होते हैं, जिनसे शराब और ब्रांडी तैयार होती है। कश्मीर घाटी के चारों तरफ़ स्थित पहाड़ों पर अख़रोट और बादाम के वृक्ष हैं, जिनकी गिरियों से तेल निकाला जाता है। भूटान में भी फलों के बगीचे हैं और वहाँ से भारत को संतरों का निर्यात किया जाता है।

बागानी फ़सलों में चाय मुख्यतः पहाड़ों और दार्जिलिंग में तराई के मैदानों में उगाई जाती है। कांगड़ा घाटी में भी कुछ मात्रा में चाय की खेती होती है। सिक्किम, भूटान और दार्जिलिंग के पहाड़ों में इलायची के भी बाग़ हैं। उत्तरांचल के उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ ज़िलों में स्थित बाग़ानों में औषधीय वनस्पतियाँ भी उगाई जाती हैं। गर्मी के मौसम में कश्मीर के ‘मार्ग’ नामक चरागाहों में व्यापक पैमाने पर ऋतुप्रवास (मवेशियों का मौसमी प्रवास) होता है यहाँ उपलब्ध विषम चरागाह भूमि में भेड़, बकरी और याक पाले जाते हैं।

हिमालय क्षेत्र में 1940 के दशक से शुरू हुई तेज़ जनसंख्या वृद्धि ने कई इलाक़ों में जंगलों पर ज़बरदस्त दबाव डाला है। कृषि के लिए जंगलों की सफ़ाई करने और ईंधन के लिए लकड़ी काटने से ऊपरी क्षेत्र की खड़ी ढलानों पर भी जंगल ख़त्म हो रहे हैं, जिससे पर्यावरण को क्षति पहुँच रही है। सिर्फ़ सिक्किम और भूटान में ही बड़े इलाक़ों में सघन वन बचे हुए हैं।

हिमालय खनिज पदार्थों से समृद्ध क्षेत्र है हालांकि इनका दोहन अपेक्षाकृत सुगम क्षेत्रों तक ही सीमित है। जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में खनिजों का सर्वाधिक मात्रा में संकेंद्रण है। ज़ास्कर पहाड़ों में नीलम पाया जाता है और निकटस्थ सिंधु नदी के थाले में जलोढ़ीय सोना पाया जाता है। बाल्टिस्तान में ताम्र अयस्क के भंडार हैं और कश्मीर घाटी में लौह अयस्क भी पाया जाता है। जम्मू-कश्मीर में बॉक्साइट भी मिलता है। नेपाल, भूटान और सिक्किम में कोयला, अभ्रक, जिप्सम के भंडार और लौह, ताम्र, सीसा तथा जस्ते के अयस्क के विशाल भंडार हैं।

हिमालय की नदियों में जलविद्युत उत्पादन की ज़बरदस्त क्षमता है और भारत में 1950 के दशक से ही इसका व्यापक दोहन किया जा रहा है। बाह्य हिमालय में सतलुज नदी पर भाखड़ा नांगल में विशालकाय बहुउद्देशीय परियोजना स्थित है। 1963 में तैयार इस बांध के जलाशय की क्षमता लगभग 10 अरब क्यूबिक मीटर है और यहाँ इसकी मूल विद्युत उत्पादन क्षमता कुल 1,050 मेगावाट है। हिमालय की तीन अन्य नदियों, कोसी, गंडक (नारायणी) और जलधाक, का भी भारत में दोहन होता है और इनसे नेपाल तथा भूटान में विद्युत आपूर्ति होती हैं।

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.