खेलत फाग सुहाग भरी -रसखान
Khetal faag suhag Bhari -Raskhan
खेलत फाग सुहाग भरी, अनुरागहिं लालन को धरि कै ।
भारत कुंकुम, केसर की पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥
गेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै ।
जात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥