Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Saudagar” , “सौदागर” Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

सौदागर

Saudagar

 

 

एंडी और मैंडी बहुत पक्के मित्र थे | वे बचपन से ही स्कूल में साथ पढ़े थे | जब वे युवा हुए तो उन्होंने तय किया कि वे दोनों अपना व्यापार भी एक साथ करेंगे |

 

दोनों ने मिलकर कपड़े का व्यापार शुरू किया और उनका व्यापार खूब अच्छा चल निकला | वे दोनों विवाह करके घर बसाने की सोचने लगे, लेकिन तभी उनके व्यापार को किसी की नजर लग गई | किस्मत ने उनका साथ छोड़ दिया और व्यापार धीरे-धीरे ठप होने लगा |

 

एक दिन एंडी बोला – दोस्त, क्यों न हम कहीं और चल कर किस्मत आजमाएं ? हमारा व्यापार मंदा होता जा रहा है | यदि यही हाल रहा तो हमें भोजन के भी लाले पड़ जाएंगे | इससे तो अच्छा है कि हम किसी दूसरे देश जाकर नया व्यापार शुरू कर दें |

 

मैंडी बोला – एंडी तुम ठीक कहते हो | हमें धीरे-धीरे यहां का काम बंद कर देना चाहिए | ताकि पैसा इकट्ठा करके कहीं और व्यापार कर सकें |

 

दो महीने के भीतर दोनों मित्रों ने मिलकर अपना व्यापार बंद कर दिया | अपने धन को अशर्फियों के रूप में लेकर वे अपने घोड़ों पर सवार होकर चल दिए | दो दिन में वे दूसरे देश पहुंच गए |

 

दोनों ने वहां जाकर एक सराय में अपना समान रख दिया | रात्रि में मैंडी बोला – एंडी, मैं हजार अशर्फी और घोड़ा लेकर जाता हूं और देखता हूं कि व्यापार का कोई इंतजाम हो जाए | तब तक तुम यहीं मेरा इंतजार करो |

 

एंडी बोला – मित्र, जरा संभल कर जाना, न जाने यहां के लोग कैसे हों ?

 

मैंडी को व्यापार का अच्छा तजुर्बा था, वह बोला – फिक्र न करो मित्र | अच्छा मैं चलता हूं | शाम तक लौट आऊंगा |

 

थोड़ी ही दूर जाने पर एक व्यक्ति ने पूछा – क्यों भैया, क्या घोड़ा बेचने जा रहे हो ?

 

मैंडी बोला – कोई खास इरादा तो नहीं है | पर कोई अच्छा खरीदार मिल जाए तो बेच भी सकता हूं |

 

वह व्यक्ति बोला – मैं तुम्हारा घोड़ा खरीदने को तैयार हूं | बताओ, तुम्हारे घोड़े की कीमत क्या है ?

 

मैंडी ने सोचा मुझे घोड़ा बेचना तो है नहीं, पर यदि इसकी अच्छी कीमत मिल जाए तो बेचने में कोई हर्ज भी नहीं है | वैसे भी यह घोड़ा बूढ़ा हो गया है | इसके दाम ठीक मिल गए तो इसके बदले दूसरा अच्छा घोड़ा खरीद लूंगा | मैंडी बोला – मेरे घोड़े की कीमत तो पांच सौ अशर्फी है |

 

वह व्यक्ति बोला – मैं यहीं का दुकानदार हूं | तुम कोई अजनबी जान पड़ते हो | यहां तो घोड़ा सौ अशर्फी में मिल जाता है |

 

मैंडी बोला – लेना हो तो लो, इसकी कीमत कम नहीं होगी | क्या नाम है तुम्हारा ?

 

वह व्यक्ति बोला – मेरा नाम रशैल है | मुझे तुम्हारा घोड़ा पसंद है | यह लो पांच सौ अशर्फी, अब घोड़ा मेरा हुआ |

 

मैंडी ने खुश होकर पांच सौ अशर्फी ले लीं और घोड़े से उतरकर घोड़े की जीन खोलने लगा ताकि अपनी अशर्फियां निकाल सके | लेकिन रशैल मैंडी से बोला – अब यह घोड़ा मेरा हुआ तो इस पर से तुम कुछ नहीं ले सकते | हम यहां के व्यापारी हैं और जुबान के बड़े पक्के होते हैं | सौदा तय करते समय यह कतई तय नहीं हुआ था कि तुम इसकी जीन या कोई सामान उतार लोगे | अत: तुम घोड़े को हाथ भी नहीं लगा सकते |

 

मैंडी बहुत परेशान था कि अब क्या करे ? इतने में रशैल घोड़े पर बैठ कर उसे तेज दौड़ाता हुआ शहर की तरफ चला गया | मैंडी बहुत दुखी होता हुआ सराय लौट आया और अपने मित्र एंडी को सारी बात विस्तार से बताई | एंडी को रशैल की चालाकी पर बहुत क्रोध आया और उसने मन ही मन उससे बदला लेने का निश्चय किया |

 

अगले दिन सुबह एंडी तैयार होकर बोला – मैंडी, मैं शहर जा रहा हूं व्यापार के लिए कुछ न कुछ इंतजाम करके लौटूंगा | तब तक तुम यहीं आराम करो |

 

मैंडी बोला – ये पांच सौ अशर्फियां साथ लेते जाओ |

 

एंडी ने हंसते हुए जवाब दिया कि उसके लिए पच्चीस अशर्फियां ही काफी हैं | फिर वह पच्चीस अशर्फियां लेकर चल दिया | शहर में जाकर उसने रशैल की दुकान के बारे में पता किया तो पता लगा कि रशैल कसाई है और मीट बेचने का धंधा करता है |

एंडी सीधा रशैल की दुकान पर पहुंचा | उसने देखा कि रशैल की दुकान काफी बड़ी थी | ऊपर छत पर उसके बच्चे खेल रहे थे | छज्जे पर स्त्रियां बैठी काम कर रही थीं | एंडी ने दुकान में प्रवेश किया तो देखा कि बकरे के सिर और मुर्गे की टांगे लटक रही थीं | दुकान के पिछवाड़े के आंगन में घोड़ा बंधा था | रुक-रुक कर घोड़े के हिनहिनाने की आवाज आ रही थी | एंडी ने पूछा – भैया, ये सिर और टांगे कितने की हैं ?

 

रशैल बोला – यह सिर एक अशर्फी का एक है और एक जोड़ी टांगें भी एक अशर्फी की ही हैं |

 

एंडी ने पूछा – क्या यहां सारे सिर और टांगों की कीमत एक अशर्फी ही है ?

 

रशैल ने नम्रता से जवाब दिया – हां, सभी सिर और टांग की जोड़ी की कीमत एक अशर्फी है |

 

इस पर एंडी ने कुछ सोचा और पूछा – पक्की बात है न कि हर सिर की कीमत एक अशर्फी है ?

 

रशैल झुंझलाकर बोला – कह तो दिया कि हर सिर की कीमत एक अशर्फी है, क्या लिख कर दूं ?

 

एंडी ने पच्चीस अशर्फी निकाल कर रशैल के हाथ में रखी और बोला – मुझे पच्चीस सिर चाहिए |

 

रशैल बोला – पर मेरे पास तो सिर्फ पांच तो सिर ही हैं, बाकी कल ले लेना |

 

एंडी ने सख्ती दिखाते हुए कहा – कोई नए व्यापारी हो क्या ? हम व्यापारी जुबान के बड़े पक्के होते हैं, सौदा हो गया तो हो गया | दुकान के ऊपर भी बहुत सारे सिर हैं, मुझे अभी पच्चीस सिर चाहिए |

 

रशैल गिड़गिड़ाने लगा और खुशामद करने लगा | वह बोला – भैया, मैंने तो बकरे के सिर की कीमत बताई थी, तुम्हें दावत के लिए ज्यादा मीट चाहिए तो टांगें ले लो |

 

एंडी बोला – नहीं, मुझे तो सिर ही चाहिए, वह भी बिल्कुल अभी |

 

रशैल समझ गया कि यह कल वाली घटना जानता है | तुरंत खुशामद करने लगा कि मेरे बीवी – बच्चों को छोड़ दो | वह बोला – भैया, आप मैंडी के ही कोई परिचित जान पड़ते हो | लो भइया, आप अपना घोड़ा भी ले जाओ और हजार अशर्फी भी ले जाओ | पर मेरे बीवी-बच्चों की जान बक्श दो |

 

एंडी ने अपनी एक हजार अशर्फियां और घोड़ा लिया और सराय के लिए चल दिया |

 

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