Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Yamraj ne Paropkari Ko Bhakt se shreshth mana” , “यमराज ने परोपकारी को भक्त से श्रेष्ठ माना” Complete Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

यमराज ने परोपकारी को भक्त से श्रेष्ठ माना

Yamraj ne Paropkari Ko Bhakt se shreshth mana

 

एक अमीर आदमी विभिन्न मंदिरों में जनकल्याणकारी कार्यो के लिए धन देता था। विभिन्न उत्सवों व त्योहारों पर भी वह दिल खोलकर खर्च करता। शहर के लगभग सभी मंदिर उसके दिए दान से उपकृत थे। इसीलिए लोग उसे काफी इज्जत देते थे।

उस संपन्न व्यक्ति ने एक नियम बना रखा था कि वह प्रतिदिन मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाता था। दूसरी ओर एक निर्धन व्यक्ति था नित्य तेल का दीपक जलाकर एक अंधेरी गली में रख देता था जिससे लोगों को आने-जाने में असुविधा न हो। संयोग से दोनों की मृत्यु एक ही दिन हुई। दोनों यमराज के पास साथ-साथ पहुंचे। यमराज ने दोनों से उनके द्वारा किए गए कार्यो का लेखा-जोखा पूछा। सारी बात सुनकर यमराज ने धनिक को निम्न श्रेणी और निर्धन को उच्च श्रेणी की सुख-सुविधाएं दीं।

धनिक ने क्रोधित होकर पूछा- यह भेदभाव क्यों? जबकि मैंने आजीवन भगवान के मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाया और इसने तेल का दीपक रखा और वह भी अंधेरी गली में, न कि भगवान के समक्ष? तब यमराज ने समझाया पुण्य की महत्ता मूल्य के आधार पर नहीं, कर्म की उपयोगिता के आधार पर होती है। मंदिर तो पहले से ही प्रकाशयुक्त था। इस निर्धन ने ऐसे स्थान पर दीपक जलाकर रखा, जिसका लाभ अंधेरे में जाने वाले लोगों को मिला। उपयोगिता इसके दीपक की अधिक रही। तुमने तो अपना परलोक सुधारने के स्वार्थ से दीपक जलाया था।

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