Hindi Poem of Amir Khusrow “ Bin-Bujh Paheli (Pahirlapika)“ , “बिन-बूझ पहेली (बहिर्लापिका)” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बिन-बूझ पहेली (बहिर्लापिका)

 Bin-Bujh Paheli (Pahirlapika)

 

एक नार कुँए में रहे,

वाका नीर खेत में बहे।

जो कोई वाके नीर को चाखे,

फिर जीवन की आस न राखे।।

उत्तर – तलवार

एक जानवर रंग रंगीला,

बिना मारे वह रोवे।

उस के सिर पर तीन तिलाके,

बिन बताए सोवे।।

उत्तर – मोर।

चाम मांस वाके नहीं नेक,

हाड़ मास में वाके छेद।

मोहि अचंभो आवत ऐसे,

वामे जीव बसत है कैसे।।

उत्तर – पिंजड़ा।

स्याम बरन की है एक नारी,

माथे ऊपर लागै प्यारी।

जो मानुस इस अरथ को खोले,

कुत्ते की वह बोली बोले।।

उत्तर – भौं (भौंए आँख के ऊपर होती हैं।)

एक गुनी ने यह गुन कीना,

हरियल पिंजरे में दे दीना।

देखा जादूगर का हाल,

डाले हरा निकाले लाल।

उत्तर – पान।

एक थाल मोतियों से भरा,

सबके सर पर औंधा धरा।

चारों ओर वह थाली फिरे,

मोती उससे एक न गिरे।

उत्तर – आसमान

बिन बूझ पहेली या बहिर्लापिका, इसका उत्तर पहेली से बाहर होता है।

 

 

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