Hindi Poem of Balkrishan Rao “Nadi ko rasta kisne dikhaya, “नदी को रास्ता किसने दिखाया ? ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

नदी को रास्ता किसने दिखाया ? – बालकृष्ण राव

Nadi ko rasta kisne dikhaya – Balkrishan Rao

 

नदी को रास्ता किसने दिखाया?
सिखाया था उसे किसने
कि अपनी भावना के वेग को
उन्मुनक्तव बहने दे?
कि वह अपने लिए
खुद खोज लेगी
सिन्धु की गम्भीरता
स्व्च्छतन्द बहकर?

इसे हम पूछते आए युगों से,
और सुनते भी युगों से आ रहे उत्तकर नदी का।
मुझे कोई कभी आया नहीं था राह दिखलाने,
बनाया मार्ग मैने आप ही अपना।
ढकेला था शिलाओं को,
गिरी निर्भिकता से मैं कई ऊँचे प्रपातों से,
वनों में, कंदराओं में,
भटकती, भूलती मैं
फूलती उत्साकह से प्रत्येंक बाधा-विघ्नर को
ठोकर लगाकर, ठेलकर,
बढती गई आगे निरन्तर
एक तट को दूसरे से दूरतर करती।

बढ़ी सम्पन्नरता के
और अपने दूर-दूर तक फैले साम्राज्या के अनुरूप
गति को मन्द कर…
पहुँची जहाँ सागर खडा था
फेन की माला लिए
मेरी प्रतीक्षा में।
यही इतिवृत्तष मेरा …
मार्ग मैने आप ही बनाया।

मगर भूमि का है दावा,
कि उसने ही बनाया था नदी का मार्ग ,
उसने ही
चलाया था नदी को फिर
जहाँ, जैसे, जिधर चाहा,
शिलाएँ सामने कर दी
जहाँ वह चाहती थी
रास्ताह बदले नदी,
जरा बाएँ मुड़े
या दाहिने होकर निकल जाए,
स्वदयं नीची हुई
गति में नदी के
वेग लाने के लिए
बनी समतल
जहाँ चाहा कि उसकी चाल धीमी हो।
बनाती राह,
गति को तीव्र अथवा मन्द करती
जंगलों में और नगरों में नचाती
ले गई भोली नदी को भूमि सागर तक

किधर है सत्यद?
मन के वेग ने
परिवेश को अपनी सबलता से झुकाकर
रास्ता अपना निकाला था,
कि मन के वेग को बहना पडा था बेबस
जिधर परिवेश ने झुककर
स्वरयं ही राह दे दी थी?
किधर है सत्यव?

क्या आप इसका जबाब देंगे?

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