Hindi Poem of Divik Ramesh “Maa ke pankh nahi hote”,”माँ के पँख नहीं होते” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

माँ के पँख नहीं होते

 Maa ke pankh nahi hote

माँ के पंख नहीं होते

कुतर देते हॆं उन्हें

होते ही पॆदा

खुद उसी के बच्चे ।

माँ के पंख नहीं होते ।

– लगभग गाती और रोती थी माँ

ऎसा ही कुछ भले ही शब्द न रहे हों हूबहू

न रहा हो लहजा भले ही हूबहू ।

पर जब-जब पिटती थी माँ

माँ गाती थी और रोती थी

चिपका लेती थी हमें और रोती थी

और-और रोती थी जोर-जोर से भी –

माँ के पंख नहीं होते

कुतर देते हैं उन्हें

होते ही पैदा

खुद उसी के बच्चे ।

माँ के पंख नहीं होते ।

माँ बकती गालियाँ –

हरामजादा मर क्यों नहीं जाता

लुगाई पर ही चलता है जोर

पड़ेंगे एक दिन कीड़े

देख लेना पड़ेंगे एक दिन कीड़े

टूटेंगे हाथ-पाँव ।

पर हमें कुछ समझ नहीं आता

वहाँ कोई होता भी नहीं

सिवाय हमारे और माँ के

कसे हुए । तब भी माँ बकती गालियाँ

और रोती और गाती-

माँ के पंख नहीं होते

कुतर देते हॆं उन्हें

होते ही पॆदा

खुद उसी के बच्चे ।

माँ के पंख नहीं होते ।

जिनके बच्चे नहीं होते

कि बचे हैं जिनके पंख भी ।

क्या कहेंगी उनके बारे में

सिमोन बुआ दादी?

 

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