Hindi Poem of Gopal Prasad Vyas “Vyan koi kanta nahi“ , “व्यंग्य कोई कांटा नहीं” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

व्यंग्य कोई कांटा नहीं
Vyan koi kanta nahi

व्यंग्य कोई कांटा नहीं-
फूल के चुभो दूं ,
कलम कोई नश्तर नहीं-
खून में डूबो दूं
दिल कोई कागज नहीं-
लिखूं और फाडूं
साहित्य कोई घरौंदा नहीं-
खेलूं और बिगाडूं!

मैं कब कहता हूँ-
साहित्य की भी कोई मर्यादा है!
कौन वह कुंठित और जड़ है
जिसने इसे सीमाओं और रेखाओं में बाँधा है?
साहित्य तो कीचड़ का कमल है,
आँधियों में भी लहराने वाली पतंग है।
वह धरती की आह है,
पसीना है, सड़न है, सुगंध है।

साहित्य कुंवारी माँ की आत्महत्या नहीं,
गुनाहों का देवता है,
वह मरियम का पुत्र है,
रासपुटिन का धेवता है।
साहित्य फ्रायड की वासनाओं का लेखा नहीं,
गोकुल के कन्हैया की लीला है,
उसके आँगन का हर छोर
विरहिणी गोपियों के आँसुओं से गीला है।

हास्य केले का छिलका नहीं-
सड़क पर फेंक दो और आदमी फिसल जाए,
व्यंग्य बदतमीजों के मुंह का फिकरा नहीं-
कस दो और संवेदना छिल जाए।
हास्य किसी फूहड़ के जूड़े में
रखा हुआ टमाटर नहीं,
वह तो बिहारी की नायिका की
नाक का हीरा है।
मगर वे इसे क्या समझेंगे
जो साहित्य का खोमचा लगाते हैं
और हास्य जिनके लिए जलजीरा है!

इसे समझो, पहचानो,
यह आलोचक नहीं,
हिन्दी का जानीवाकर है
बात लक्षण में नहीं
अभिधा में ही कह रहा हूँ-
अंधकार का अर्थ ही प्रभाकर है!

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