Hindi Poem of Gopal Singh Nepali “Deepak jalta raha raatbhar”,”दीपक जलता रहा रातभर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

दीपक जलता रहा रातभर

 Deepak jalta raha raatbhar

तन का दिया, प्राण की बाती,

दीपक जलता रहा रात-भर ।

दु:ख की घनी बनी अँधियारी,

सुख के टिमटिम दूर सितारे,

उठती रही पीर की बदली,

मन के पंछी उड़-उड़ हारे ।

बची रही प्रिय की आँखों से,

मेरी कुटिया एक किनारे,

मिलता रहा स्नेह रस थोडा,

दीपक जलता रहा रात-भर ।

दुनिया देखी भी अनदेखी,

नगर न जाना, डगर न जानी;

रंग देखा, रूप न देखा,

केवल बोली ही पहचानी,

कोई भी तो साथ नहीं था,

साथी था ऑंखों का पानी,

सूनी डगर सितारे टिमटिम,

पंथी चलता रहा रात-भर ।

अगणित तारों के प्रकाश में,

मैं अपने पथ पर चलता था,

मैंने देखा, गगन-गली में,

चाँद-सितारों को छलता था ।

आँधी में, तूफ़ानों में भी,

प्राण-दीप मेरा जलता था,

कोई छली खेल में मेरी,

दिशा बदलता रहा रात-भर ।

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