Hindi Poem of Naresh Saksena “  Tum vahi man ho ki koi dusre ho”,”तुम वही मन हो कि कोई दूसरे हो” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

तुम वही मन हो कि कोई दूसरे हो

 Tum vahi man ho ki koi dusre ho

 

कल तुम्हें सुनसान अच्छा लग रहा था

आज भीड़ें भा रही हैं

तुम वही मन हो कि कोई दूसरे हो

गोल काले पत्थरों से घिरे उस सुनसान में उस शाम

गहरे धुँधलके में खड़े कितने डरे

कँपते थरथराते अंत तक क्यों मौन थे तुम

किस तिलस्मी शिकंजे के असर में थे

जिगर पत्थर, आँख पत्थर, जीभ पत्थर क्यों हुई थी

सच बताओ, उन क्षणों में कौन थे तुम

कल तुम्हें अभिमान अच्छा लग रहा था

आज भिक्षा भा रही है

तुम वही मन हो कि कोई दूसरे हो ।

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