Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Suno Kabir”,” सुनो कबीर!” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सुनो कबीर!

 Suno Kabir

 

एक नन्हीं-सी ज्योति!

माटी में आँचल में अँकुआता बीज,

काल -धारा में बहे जा रहे जीवन को

निरंतरता की रज्जु में बाँधता.

भंगुर-से तन में सँजोए नव-निर्माण कण,

काल से आँख मिलाती नव-जीवन रचती

धरती या नारी?

उस अंतर्निहित ज्योति का स्फोट,

दर्पण पर प्रतिवर्तित असह्य प्रकाश!

स्तब्ध काल-भुजंग अंधिया जाये,

अपना दाँव न चल सके,

तो तुम सहानुभूत या भय-भीत से

बोल दिए –

‘नारी की छाया परत

अंधा होत भुजंग!’

निःस्व समर्पण के क्षणों में

बहुत भाती है न बहुरिया?

फिर मस्ती में डूबा मन, और आहत अहं

जब बिठा नहीं पाता संगति,

व्यवहार -जगत की वास्तविकताओं से,

परिणामों से दामन बचा,

बचते-भागते,

उसी पर दोष धरते, गरियाते,

बन जाते हो ख़ुद

राम की बहुरिया!

सोचते रहते हो –

‘तिनकी कौन गति

जे नित नारी संग?’

सुनो कबीर,

जिसमें सामर्थ्र्य होगी,

भागेगा नहीं,

अर्धांग में धारण कर

बन जाएगा पूर्ण-पुरुष!

निर्भय-निर्द्वंद्व!

 

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