Hindi Poem of Ramdhari Singh Dinkar “Roti or Swadhinta”, “रोटी और स्वाधीनताए ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

रोटी और स्वाधीनता -रामधारी सिंह दिनकर

Roti or Swadhinta – Ramdhari Singh Dinkar

आज़ादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहाँ जगाएगा ?
मरभूखे ! इसे घबराहट में तू बेच न तो खा जाएगा ?
आज़ादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं,
पर कहीं भूख बेताब हुई तो आज़ादी की खैर नहीं।

हो रहे खड़े आज़ादी को हर ओर दगा देने वाले,
पशुओं को रोटी दिखा उन्हें फिर साथ लगा लेने वाले।
इनके जादू का ज़ोर भला कब तक बुभुक्षु सह सकता है ?
है कौन, पेट की ज्वाला में पड़कर मनुष्य रह सकता है ?

झेलेगा यह बलिदान ? भूख की घनी चोट सह पाएगा ?
आ पड़ी विपद तो क्या प्रताप-सा घास चबा रह पाएगा ?
है बड़ी बात आज़ादी का पाना ही नहीं, जगाना भी,
बलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी।

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