Hindi Poem of Shiv Mangal Singh Suman “  Baat ki baat“ , “बात की बात” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बात की बात

 Baat ki baat

 

जब हम अपने से ही अपनी बीती कहने लग जाते हैं।

तन खोया-खोया-सा लगता मन उर्वर-सा हो जाता है

कुछ खोया-सा मिल जाता है कुछ मिला हुआ खो जाता है।

लगता; सुख-दुख की स्‍मृतियों के कुछ बिखरे तार बुना डालूँ

यों ही सूने में अंतर के कुछ भाव-अभाव सुना डालूँ

कवि की अपनी सीमाऍं है कहता जितना कह पाता है

कितना भी कह डाले, लेकिन-अनकहा अधिक रह जाता है

यों ही चलते-फिरते मन में बेचैनी सी क्‍यों उठती है?

बसती बस्‍ती के बीच सदा सपनों की दुनिया लुटती है

जो भी आया था जीवन में यदि चला गया तो रोना क्‍या?

ढलती दुनिया के दानों में सुधियों के तार पिरोना क्‍या?

जीवन में काम हजारों हैं मन रम जाए तो क्‍या कहना!

दौड़-धूप के बीच एक-क्षण, थम जाए तो क्‍या कहना!

कुछ खाली खाली होगा ही जिसमें निश्‍वास समाया था

उससे ही सारा झगड़ा है जिसने विश्‍वास चुराया था

फिर भी सूनापन साथ रहा तो गति दूनी करनी होगी

साँचे के तीव्र-विवर्त्‍तन से मन की पूनी भरनी होगी

जो भी अभाव भरना होगा चलते-चलते भर जाएगा

पथ में गुनने बैठूँगा तो जीना दूभर हो जाएगा।

 

 

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