Hindi Poem of Shriprakash Shukal “  Ek stri ghar se nikarte hue bhi nahi nikalti”,”एक स्त्री घर से निकलते हुए भी नहीं निकलती” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

एक स्त्री घर से निकलते हुए भी नहीं निकलती

 Ek stri ghar se nikarte hue bhi nahi nikalti

 

एक स्त्री घर से निकलते हुए भी नहीं निकलती

वह जब भी घर से निकलती है

अपने साथ घर की पूरी खतौनी लेकर निकलती है

अचानक उसे याद आता है

गैस का जलना

दरवाज़े का खुला रहना

नल का टपकना और दूध का दहकना

एक-एक कर वह पूछती है

प्रेस तो बंद कर दिया था न!

आँगन का दरवाज़ा तो लगा दिया था न!

किचेन का सीधा वाला नल बंद करना तो नहीं भूली!

अरे! हाँ! वो सब्ज़ी

वह मँहगी हरी पत्तियों वाली सब्ज़ी

जो अभी कल ही तो लाई थी सटटी से

प्लास्टिक से निकाल दिया था न!

हाँ, हाँ अरे सब तो ठीक है

आपको ध्यान है आलमारी लाक करना तो नहीं भूली

अभी कल की ही तो बात है महीनों को बचाए पैसे से नाक की कील ख़रीदी थी ।

इस तरह वह बार-बार याद करती और परेशान होती है

कि दूध वाले को मना करना भूल गई

कि बरतन वाली से कहना भूल गई कि उसे कल नहीं आना था

कि पड़ोसिन को बता ही देना था कि कभी कभी मेरे घर को भी झाँक लिया करतीं ।

इस तरह एक स्त्री निकलती है घर से

जैसे निकलना ही उसका होना है घर में ।

 

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