Hindi Poem of Subhadra Kumari Chauhan “Anokha Daan ”, “अनोखा दान” Complete Poem for Class 10 and Class 12

अनोखा दान -सुभद्रा कुमारी चौहान

Anokha Daan – Subhadra Kumari Chauhan

 

अपने बिखरे भावों का मैं,
गूँथ अटपटा सा यह हार।
चली चढ़ाने उन चरणों पर,
अपने हिय का संचित प्यार॥

डर था कहीं उपस्थिति मेरी,
उनकी कुछ घड़ियाँ बहुमूल्य।
नष्ट न कर दे, फिर क्या होगा,
मेरे इन भावों का मूल्य?

संकोचों में डूबी मैं जब,
पहुँची उनके आँगन में।
कहीं उपेक्षा करें न मेरी,
अकुलाई सी थी मन में।

किंतु अरे यह क्या,
इतना आदर, इतनी करुणा, सम्मान?
प्रथम दृष्टि में ही दे डाला,
तुमने मुझे अहो मतिमान!

मैं अपने झीने आँचल में,
इस अपार करुणा का भार।
कैसे भला सँभाल सकूँगी,
उनका वह स्नेह अपार।

लख महानता उनकी पल-पल,
देख रही हूँ अपनी ओर।
मेरे लिए बहुत थी केवल,
उनकी तो करुणा की कोर।

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