Hindi Poem of Sumitranand Pant “Jag-Jeevan mein jo chir mahan ”, “जग-जीवन में जो चिर महान” Complete Poem for Class 10 and Class 12

जग-जीवन में जो चिर महान -सुमित्रानंदन पंत

Jag-Jeevan mein jo chir mahan – Sumitranand Pant

जग-जीवन में जो चिर महान,
सौंदर्य – पूर्ण औ सत्य – प्राण,
मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ!
जिसमें मानव – हित हो समान!

जिससे जीवन में मिले शक्ति,
छूटें भय, संशय, अंध – भक्ति;
मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ!
मिज जावें जिसमें अखिल व्यक्ति!

दिशि-दिशि में प्रेम – प्रभा प्रसार,
हर भेद – भाव का अंधकार,
मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ!
मानव के उर के स्वर्ग-द्वार!

पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान
करने मानव का परित्राण,
ला सकूँ विश्व में एक बार
फिर से नव जीवन का विहान!

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