Hindi Short Story and Hindi Poranik kathaye on “Jab Arjun Ki Jaan Bachan ke liye Shri Krishan aur Inder ne Kiya Karn ke sath chal” Hindi Prernadayak Story for All Classes.

जब अर्जुन की जान बचने के लिए श्री कृष्ण और इंद्र ने किया कर्ण के साथ छल Jab Arjun Ki Jaan Bachan ke liye Shri Krishan aur Inder ne Kiya Karn ke sath chal

महाभारत युद्ध में कर्ण सबसे शक्तिशाली योद्धा माने जाते हैं। वह दुर्योधन अर्थात कौरवों की ओर से लड़ रहे थे। कर्ण को किस तरह से काबू में रखा जाए, यह कृष्ण के लिए भी चिंता का विषय हो चला था। लेकिन कर्ण दानवीर, नैतिक और संयमशील व्यक्ति थे। ये तीनों ही बातों उनके विपरीत पड़ गईं।  कैसे?

भगवान कृष्ण यह भली-भांति जानते थे कि जब तक कर्ण के पास उसका कवच और कुंडल है, तब तक उसे कोई नहीं मार सकता। ऐसे में अर्जुन की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। उधर देवराज इन्द्र भी चिंतित थे, क्योंकि अर्जुन उनका पुत्र था। भगवान कृष्ण और देवराज इन्द्र दोनों जानते थे कि जब तक कर्ण के पास पैदायशी कवच और कुंडल हैं, वह युद्ध में अजेय रहेगा।

तब कृष्ण ने देवराज इन्द्र को एक उपाय बताया और फिर देवराज इन्द्र एक ब्राह्मण के वेश में पहुंच गए कर्ण के द्वार। देवराज भी सभी के साथ लाइन में खड़े हो गए। कर्ण सभी को कुछ न कुछ दान देते जा रहे थे। बाद में जब देवराज का नंबर आया तो दानी कर्ण ने पूछा- विप्रवर, आज्ञा कीजिए! किस वस्तु की अभिलाषा लेकर आए हैं?

विप्र बने इन्द्र ने कहा, हे महाराज! मैं बहुत दूर से आपकी प्रसिद्धि सुनकर आया हूं। कहते हैं कि आप जैसा दानी तो इस धरा पर दूसरा कोई नहीं है। तो मुझे आशा ही नहीं विश्‍वास है कि मेरी इच्छित वस्तु तो मुझे अवश्य आप देंगे ही।‍ फिर भी मन में कोई शंका न रहे इसलिए आप संकल्प कर लें तब ही मैं आपसे मांगूंगा अन्यथा आप कहें तो में खाली हाथ चला जाता हूं?

तब ब्राह्मण के भेष में इन्द्र ने और भी विनम्रतापूर्वक कहा- नहीं-नहीं राजन! आपके प्राण की कामना हम नहीं करते। बस हमें इच्छित वस्तु मिल जाए, तो हमें आत्मशांति मिले। पहले आप प्रण कर लें तो ही मैं आपसे दान मांगू।

कर्ण ने तैश में आकर जल हाथ में लेकर कहा- हम प्रण करते हैं विप्रवर! अब तुरंत मांगिए। तब क्षद्म इन्द्र ने कहा- राजन! आपके शरीर के कवच और कुंडल हमें दानस्वरूप चाहिए।

एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। कर्ण ने इन्द्र की आंखों में झांका और फिर दानवीर कर्ण ने बिना एक क्षण भी गंवाएं अपने कवच और कुंडल अपने शरीर से खंजर की सहायता से अलग किए और ब्राह्मण को सौंप दिए।

इन्द्र ने तुंरत वहां से दौड़ ही लगा दी और दूर खड़े रथ पर सवार होकर भाग गए। इसलिए क‍ि कहीं उनका राज ‍खुलने के बाद कर्ण बदल न जाए। कुछ मील जाकर इन्द्र का रथ नीचे उतरकर भूमि में धंस गया। तभी आकाशवाणी हुई, ‘देवराज इन्द्र, तुमने बड़ा पाप किया है। अपने पुत्र अर्जुन की जान बचाने के लिए तूने छलपूर्वक कर्ण की जान खतरे में डाल दी है। अब यह रथ यहीं धंसा रहेगा और तू भी यहीं धंस जाएगा।’

तब इन्द्र ने आकाशवाणी से पूछा, इससे बचने का उपाय क्या है? तब आकाशवाणी ने कहा- अब तुम्हें दान दी गई वस्तु के बदले में बराबरी की कोई वस्तु देना होगी। इन्द्र क्या करते, उन्होंने यह मंजूर कर लिया। तब वे फिर से कर्ण के पास गए। लेकिन इस बार ब्राह्मण के वेश में नहीं। कर्ण ने उन्हें आता देखकर कहा- देवराज आदेश करिए और क्या चाहिए?

इन्द्र ने झेंपते हुए कहा, हे दानवीर कर्ण अब मैं याचक नहीं हूं बल्कि आपको कुछ देना चाहता हूं। कवच-कुंडल को छोड़कर मांग लीजिए, आपको जो कुछ भी मांगना हो।

कर्ण ने कहा- देवराज, मैंने आज तक कभी किसी से कुछ नही मांगा और न ही मुझे कुछ चाहिए। कर्ण सिर्फ दान देना जानता है, लेना नहीं।

तब इन्द्र ने विनम्रतापूर्वक कहा- महाराज कर्ण, आपको कुछ तो मांगना ही पड़ेगा अन्यथा मेरा रथ और मैं यहां से नहीं जा सकता हूं। आप कुछ मांगेंगे तो मुझ पर बड़ी कृपा होगी। आप जो भी मांगेंगे, मैं देने को तैयार हूं।

कर्ण ने कहा- देवराज, आप कितना ही प्रयत्न कीजिए लेकिन मैं सिर्फ दान देना जानता हूं, लेना नहीं। मैंने जीवन में कभी कोई दान नहीं लिया।

तब लाचार इन्द्र ने कहा- मैं यह वज्ररूपी शक्ति आपको बदले में देकर जा रहा हूं। तुम इसको जिसके ऊपर भी चला दोगे, वो बच नहीं पाएगा। भले ही साक्षात काल के ऊपर ही चला देना, लेकिन इसका प्रयोग सिर्फ एक बार ही कर पाओगे।

कर्ण कुछ कहते उसके पहले ही देवराज वह वज्र शक्ति वहां रखकर तुरंत भाग लिए। कर्ण के आवाज देने पर भी वे रुके नहीं। बाद में कर्ण को उस वज्र शक्ति को अपने पास मजबूरन रखना पड़ा। लेकिन जैसे ही दुर्योधन को मालूम पड़ा कि कर्ण ने अपने कवच-कुंडल दान में दे दिए हैं, तो दुर्योधन को तो चक्कर ही आ गए। उसको हस्तिनापुर का राज्य हाथ से जाता लगने लगा। लेकिन जब उसने सुना कि उसके बदले वज्र शक्ति मिल गई है तो फिर से उसकी जान में जान आई।

अब इसे भी कर्ण की गलती नहीं मान सकते। यह उसकी मजबूरी थी। लेकिन उसने यहां गलती यह की कि वह इन्द्र से कुछ मांग ही लेता। नहीं मांगने की गलती तो गलती ही है। अरे, वज्र शक्ति को तीन बार प्रयोग करने की इच्छा ही व्यक्त कर देता।

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