Hindi Vrat Katha, Dharmik katha on “Kamla Padmini Ekadashi Vrat Kat”, “कमला पद्मिनी एकादशी व्रतकथा” Hindi Poranik Prernadayak Story for All Classes.

कमला पद्मिनी एकादशी व्रतकथा

Kamla Padmini Ekadashi Vrat Katha 

धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले- हे जनार्दन! अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।

श्री भगवान बोले हे राजन्- अधिक मास में शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी (कमला) एकादशी कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिक मास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।

अधिक मास या मलमास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशी होती है। अधिक मास में दो एकादशी होती है जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती है। ऐसा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा बताई थी।

भगवान कृष्‍ण बोले- मलमास में अनेक पुण्यों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है। जो मनुष्‍यों के लिए भी दुर्लभ है।

यह एकादशी करने के लिए दशमी के दिन व्रत का आरंभ करके काँसी के पात्र में जौं-चावल आदि का भोजन करें तथा नमक न खावें। भूमि पर सोए और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि से निवृत्त होकर दन्तधावन करें और जल के बारह कुल्ले करके शुद्ध हो जाए।

सूर्य उदय होने के पूर्व उत्तम तीर्थ में स्नान करने जाए। इसमें गोबर, मिट्‍टी, तिल तथा कुशा व आँवले के चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करें। श्वेत वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु के मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करें।

हे म‍ुनिवर! पूर्वकाल में त्रेया युग में हैहय नामक राजा के वंश में कृतवीर्य नाम का राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की एक हजार परम प्रिय स्त्रियाँ थीं, परंतु उनमें से किसी को भी पुत्र नहीं था, जो उनके राज्य भार को संभाल सकें। देव‍ता, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकि‍त्सकों आदि से राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए काफी प्रयत्न किए लेकिन सब असफल रहे। एक दिन राजा को वन में तपस्या के लिए जाते थे उनकी परम प्रिय रानी इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की पद्मिनी नाम वाली कन्या राजा के साथ वन जाने को तैयार हो गई। दोनों ने अपने अंग के सब सुंदर वस्त्र और आभूषणों का त्याग कर वल्कल वस्त्र धारण कर गन्धमादन पर्वत पर गए।

राजा ने उस पर्वत पर दस हजार वर्ष तक तप किया परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से अनुसूया ने कहा- बारह मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है जो बत्तीस मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशीयुक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत करने से पुत्र देने वाले भगवान तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे।

रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से एकादशी का व्रत किया। वह एकादशी को निराहार रहकर रात्रि जागरण कर‍ती। इस व्रत से प्रन्न होकर भगवान विष्‍णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तिवीर्य उत्पन्न हुए। जो बलवान थे और उनके समान तीनों लोकों में कोई बलवान नहीं था। तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था।

सो हे नारद ! जिन मनुष्यों ने मलमास शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत किया है, जो संपूर्ण कथा को पढ़ते या सुनते हैं, वे भी यश के भागी होकर विष्‍णु लोक को प्राप्त होते है।

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