Motivational Story “Sekado chalte hai lekin mushkil se ek pahuchta hai – vah bhi durlabh hai” Hindi Motivational Story for, Primary Class, Class 10 and Class 12

सैकड़ों चलते हैं लेकिन मुश्किल से एक पहुंचता है-वह भी दुर्लभ है |

Sekado chalte hai lekin mushkil se ek pahuchta hai – vah bhi durlabh hai

दो आश्रम थेः एक आश्रम तिब्बत की राजधानी लहासा में था और इसकी एक शाखा दूर कहीं पहाड़ों के भीतर थी। वह लामा, जो इस आश्रम का प्रधान था, बूढ़ा हो रहा था और वह चाहता था कि प्रमुख आश्रम से उसका उत्तराधिकारी बनने के लिए किसी को वहां भेजा जाए। उसने एक संदेश भेजा।

एक लामा वहां गया–यह कुछ सप्ताह का पैदल मार्ग था। उसने प्रधान से कहाः ‘हमारे गुरु बहुत बीमार हैं, वृद्ध हैं और इस बात की पूरी संभावना है कि वह अब बहुत दिनों तक नहीं जीएंगे। अपनी मृत्यु से पूर्व, वह चाहते हैं कि आप किसी संन्यासी को जो भलीभांति प्रशिक्षित हो, को वहां भेज दें ताकि वह आश्रम का उत्तरदायित्व सम्हाल सके।

प्रधान ने कहाः ‘कल सुबह तुम उन सबको ले जाओ।’

उस नौजवान ने कहाः ‘उन सबको ले जाओ? मैं केवल एक को लेने आया हूं। उन सबको ले जाओ, से आपका क्या मतलब है?

उसने कहाः ‘तुम समझते नहीं हो। मैं सौ संन्यासियों को भेजूंगा।’

‘लेकिन’, उस नौजवान ने कहाः ‘यह तो बहुत अधिक है। हम इतने सारे लोगों का क्या करेंगे? हम गरीब हैं और हमारा आश्रम भी गरीब है। एक सौ संन्यासी हमारे ऊपर भार होंगे, और मैं तो केवल एक को भेजने की प्रार्थना करने यहां आया हूं।

प्रधान ने कहाः ‘चिंता न करो, केवल एक ही पहुंचेगा। मैं भेजूंगा सौ, पर निन्यानबे राह में ही खो जाएंगे। तुम सौभाग्यशाली होगे यदि एक भी पहुंच जाए।’

उसने कहाः ‘अद्भुत…’

दूसरे दिन बड़ा एक सौ संन्यासियों का, जुलूस वहां से रवाना हुआ और उनको सारे देश में से होकर गुजरना था। प्रत्येक संन्यासी का घर रास्तें में कहीं न कहीं पड़ता था और लोग खिसकना शुरू कर दिये…’मैं वापस आऊंगा। बस थोड़े से दिन अपने माता-पिता के साथ…मैं बहुत साल से वहां नहीं गया हूं।’ एक सप्ताह में केवल दस लोग बचे थे।

उस नौजवान ने कहाः ‘वह बूढ़ा प्रधान शायद ठीक ही था। देखें इन दस लोगों का क्या होता है।’

जैसे ही वे एक नगर में उन्होंने प्रवेश किया, कुछ संन्यासी आए और बोले कि उनके प्रधान की मृत्यु हो गई हैः ‘इसलिए आपकी बड़ी कृपा होगी–आप दस हैं, अगर एक लामा आप हमें दे सकें जो प्रधान बन सके-और जो भी आप चाहें हम सब कुछ करने को तैयार हैं।’ अब हर कोई प्रधान बनने का इच्छुक था। अंततः उन्होंने एक व्यक्ति को तय किया और उसे वहीं छोड़ दिया।

एक दूसरे नगर में, राजा के कुछ आदमी आए और बोलेः ‘रुको, हमें तीन संन्यासी चाहिए क्योंकि राजा की बेटी की शादी है और हमें तीन पुरोहितों की आवश्यकता है। यह हमारी परंपरा है। इसलिए या तो आप अपनी इच्छा से आ जाएं वर्ना हमें आपको जबरदस्ती ले जाना पड़ेगा।’

तीन आदमी और चले गए, केवल छह बचे। और इस तरह से वे एक-एक करके कम होते चले गए। आखिर में केवल दो व्यक्ति ही बचे। और जैसे-जैसे वे आश्रम के निकट पहुंच रहे थे…सांझ हो गई थी, एक जवान स्त्री राह पर उन्हें मिली। उसने कहाः ‘आप लोग इतने करूणावान हैं। मैं यहां पहाड़ों पर रहती हूं–मेरा घर यहीं पर है। मेरे पिता एक शिकारी हैं, मेरी मां की मृत्यु हो चुकी है। और मेरे पिता बाहर गए हुए हैं, उन्होंने आज लौटने का वायदा किया था, पर वे अभी तक लौटे नहीं हैं। और रात में अकेली रहने से मैं बहुत भयभीत हूं…बस एक संन्यासी, केवल एक रात के लिए।’

वे दोनों ठहरना चाहते थे! स्त्री इतनी सुंदर थी कि उनमें आपस में बड़ा संघर्ष था। वह नौजवान जो संदेशवाहक बन कर आया था उन एक सौ व्यक्तियों को गायब होते, जाते हुए देख चुका था, और अब अंत में…अंत में उन्होंने उस स्त्री से ही कहाः ‘तुम हममें से एक को चुन लो, नहीं तो व्यर्थ में झगड़ा होगा, और हम बौद्ध भिक्षुओं से लड़ने की आशा तो की नहीं जाती।’

उसने कम आयु वाले संन्यासी को, जो कि सुंदर भी अधिक था, चुन लिया और उसे लेकर घर के भीतर चली गई। दूसरे संन्यासी ने उस नौजवान से कहाः ‘अब चलो भी। वह आदमी अब वापस नहीं आएगा; उसे भूल ही जाओ।’

नौजवान ने कहाः ‘परंतु अब, तुम मजबूत बने रहना–आश्रम बहुत समीप है।’ और आश्रम से ठीक पहले, अंतिम गांव में, एक नास्तिक ने उस संन्यासी को चुनौती दीः ‘कोई आत्मा नहीं है, कोई ईश्वर नहीं है। यह सब फिक्शन, कल्पना है, यह केवल लोगों का शोषण करने के लिए है। मैं तुम्हें सार्वजनिक वाद-विवाद के लिए चुनौती देता हूं।’

नौजवान ने कहाः ‘इस सार्वजनिक वाद-विवाद के चक्कर में मत फंसो, क्योंकि मैं नहीं जानता कि यह कब तक चलेगा। और मेरा प्रधान प्रतीक्षा कर रहा होगा-शायद वह अब तक मर भी गया होगा।’

संन्यासी ने कहाः यह पराजय होगी, बौद्धधर्म की पराजय। जब तक कि मैं इस व्यक्ति को हरा न दूं, मैं इस जगह से हिल नहीं सकता। सार्वजनिक वाद-विवाद तो अब होगा ही, अतः सारे गांव को खबर कर दो।

नौजवान ने कहाः ‘अब बहुत हो गया! क्योंकि तुम्हारे गुरु ने कहा था कि कम से कम एक तो पहुंचेगी ही, पर ऐसा लगता है कि अकेला मैं ही वापस पहुंचूंगा।’

उसने कहाः ‘तुम यहां से भाग जाओ। मैं एक तार्किक हूं और मैं इस तरह की चुनौती बरदाश्त नहीं कर सकता। इसमें चाहे महीनों लग जाये। हम हर बात की विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं क्योंकि मैं जानता हूं, मैंने इस आदमी के बारें में सुना है। वह भी बड़ा बौद्धिक, बड़ा दार्शनिक व्यक्ति है। तुम जाओ और यदि वाद-विवाद में मैं जीत गया तो मैं आऊंगा। यदि मैं हार गया तब मुझे उसका शिष्य हो जाना पड़ेगा; फिर मेरी प्रतीक्षा न करना।’

उसने कहाः ‘यह तो बहुत हो गया।nवह आश्रम पहुंचा। बूढ़ा प्रधान प्रतीक्षा कर रहा था। उसने कहाः ‘तुम आ गए़? तुम्हीं मेरे उत्तराधिकारी होओगे; उन एक सौ में से तो कोई यहां आने से रहा।’

और गुरु जानता था कि केवल एक ही वहां पहुंचेगा।

तिब्बत में यह प्राचीन कहावत है कि सैकड़ों चलते हैं लेकिन मुश्किल से एक पहुंचता है–वह भी दुर्लभ है।

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