Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “ Tum Bhitar“ , “तुम भीतर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

तुम भीतर

 Tum Bhitar

 

और समेटे हों

कविता नहीं बनेगी वह

क्योंकि

कविता तो बाहर है तुम्हारे

अपने भीतर को

बाहर से जोड़ोगे नहीं

बाहर

जिस-जिस तरफ़ जहाँ -जहाँ

जा रहा है

अपने भीतर को

उस-उस तरफ़ वहाँ -वहां

मोड़ोगे नहीं

और

पहचान नहीं होने दोगे

अब तक के इन  दो-दो

अनजानों की

तो तुम्हारी कविता की

तुम्हारे गीत-गानों की

गूँज-भर

फैलेगी कभी और कहीं

नहीं खिलेंगे अर्थ

बहार के उन बंजरों में

जहाँ  खिले बिना

कुछ नहीं होता गुलाब

कुछ नहीं होता हिना

कुछ नहीं

जाता है ठीक गिना  ऐसे में

उससे जिसका नाम

काल है

बड़ा हिसाबी है काल

वह तभी लिखेगा

अपनी बही के किसी

कोने में तुम्हें

जब तूम

भीतर और बाहर को

कर लोगे

परस्पर एक ऐसे

जैसे जादू-टोने  में

खाली मुट्ठी से

झरता है ज़र

झऱ झऱ झऱ

 

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