Hindi Poem of Majruh Sultanpuri “Hum hein Mata e kucha-o-bazar ki tarha , “हम हैं माता ए कूचा-ओ-बाज़ार की तरह ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

हम हैं माता ए कूचा-ओ-बाज़ार की तरह – मजरूह सुल्तानपुरी

Hum hein Mata e kucha-o-bazar ki tarha – Majruh Sultanpuri

 

हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह
उठती है हर निगाह ख़रीदार की तरह

इस कू-ए-तिश्नगी में बहुत है के एक जाम
हाथ आ गया है दौलत-ए-बेदार की तरह

वो तो हैं कहीं और मगर दिल के आस पास
फिरती है कोई शय निगाह-ए-यार की तरह

सीधी है राह-ए-शौक़ प यूँ ही कभी कभी
ख़म हो गैइ है गेसू-ए-दिलदार की तरह

अब जा के कुच खुला हुनर-ए-नाखून-ए-जुनून
ज़ख़्म-ए-जिगर हुए लब-ओ-रुख़्सार की तरह

‘मजरूह’ लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह

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