Hindi Poem of Ambar Ranjna Pandey “Ki dosh lagte der nahi lagti , “Hindi Poem of Ambar Ranjna Pandey “Kesh Kadhna, “केश काढ़ना (झगड़ा) ” Complete Poem for Class 10 and Class 12 ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

कि दोष लगते देर नहीं लगती – अम्बर रंजना पाण्डेय

Ki dosh lagte der nahi lagti – Ambar Ranjna Pandey

 

किसी स्त्री की परपुरुष से इतनी
मैत्री ठीक नहीं देवि

कि दोष लगते देर नहीं लगती
न गाँठ पड़ते

मेरा क्या मैं तो किसी मुनि का
छोड़ा हुआ गौमुखी कमंडल हूँ
जो लगा कभी किसी चोर के हाथ
कभी वेश्या तो कभी किसी ढोंगी ब्रह्मण के

तुम्हारा तो अपना संसार है देवि
अन्न का भंडार हैं शय्या है
जल से भरा अडोल कलश धरा है
तुम्हारे चौके में
संतान है स्वामी हैं

भय नहीं तुम्हें कि रह जाऊँगा
जैसे रह
जाता हैं कूकर रोटी वाले गृह में

चोर हूँ तुम्हारी खिड़की से लटका
पकड़ा ही जाऊँगा
मेरा अंत निश्चित है देवि
मेरा काल देखो आ रहा है

मसान है मेरा ठिकाना
शव मेरी सेज
देखो मुझसे उठती है दुर्गन्ध
युगों जलती चिताओं की

मत लगो मेरे कंठ
मेरे कंधे पर नाग का जनेऊ
मेरे कंठ में विष है देवि ।

अधगीले चौके में वह

अधगीले चौके में वह
छौंकती है खिचड़ी आधी रात
उजाले को बस डिबरी है
सब और सघन अंधकारा है

मावठा पड़ा है पूस की काली रात
शीत में धूजते है
उसके तलुवे
मुझे लगता है मेरे भीतर
बाँस का बन जल रहा है

सबसे पहले धरती है पीतल
भरा हुआ लोटा सम्मुख, फिर पत्तल पर
परसती हैं भात धुन्धुवाता
सरसों-हल्दी-तेल-नौन से भरा

‘यहीं खिला सकती हूँ
मैं जन्म की दरिद्र, अभागिन हूँ
खा कर कृतार्थ करें
इससे अधिक तो मेरे पास केवल यह
देह है
मैल है धूल है, शेष कुछ नहीं’

संकोच से मेरी रीढ़ बाँकी होती
जाती है ज्यों धनुष
वह करती रहती है प्रतीक्षा
मेरे आचमन करने की
कि माँग सके जूठन

और मेरी भूख है कि शांत ही नहीं होती
रात का दिन हो जाता है
अन्न का हो जाता है ब्रह्म

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