Hindi Poem of Ghalib “Nassha-ha Shadab-e-rang o saza-ha mast-e-tarab , “नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब” Complete Poem for Class 10 and Class 12

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब – ग़ालिब

Nassha-ha Shadab-e-rang o saza-ha mast-e-tarab -Ghalib

 

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
शीशा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-ए-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है

हम-नशीं मत कह कि बरहम कर न बज़्म-ए-ऐश-ए-दोस्त
वाँ तो मेरे नाले को भी ए’तिबार-ए-नग़्मा है

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