Hindi Poem of Ibne Insha “Sham ek gam ki sahar nahi hoti”,”शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

 Sham ek gam ki sahar nahi hoti

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

या हमीं को ख़बर नहीं होती

हम ने सब दुख जहाँ के देखे हैं

बेकली इस क़दर नहीं होती

नाला यूँ ना-रसा नहीं रहता

आह यूँ बे-असर नहीं होती

चाँद है कहकशाँ है तारे हैं

कोई शय नामा-बर नहीं होती

एक जाँ-सोज़ ओ ना-मुराद ख़लिश

इस तरफ़ है उधर नहीं होती

दोस्तों इश्क़ है ख़ता लेकिन

क्या ख़ता दरगुज़र नहीं होती

रात आ कर गुज़र भी जाती है

इक हमारी सहर नहीं होती

बे-क़रारी सही नहीं जाती

ज़िंदगी मुख़्तसर नहीं होती

एक दिन देखने को आ जाते

ये हवस उम्र भर नहीं होती

हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता

हर किसी की नज़र नहीं होती

दिल पियाला नहीं गदाई का

आशिक़ी दर-ब-दर नहीं होती

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