Hindi Poem of Madan Kashyap “Bahut bol cheke aap hamare bare me“ , “बहुत बोल चुके आप हमारे बारे में ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बहुत बोल चुके आप हमारे बारे में
Bahut bol cheke aap hamare bare me

अपना ही देश है
हमारे पास नहीं है कोई पटकथा
हम खाली हाथ ही नहीं
लगभग खाली दिमाग़ आए हैं मंच पर

विचार इस तरह तिरोहित है
कि उसके होने का अहसास तक नहीं है
बस सपने हैं जो हैं

मगर उनके होने की भी कोई भाषा नहीं है
कुछ रंग हैं पर इतने गड्ड-मड्ड
कि पहचानना असंभव

वैसे हमारी आत्मा के तहख़ाने में हैं कुछ शब्द
पर खो चुकी हैं उनकी ध्वनियाँ

निराशा का एक शान्त समुन्दर हमारी आँखों में है
और जो कभी आशा की लहरें उठती हैं उसमें

तो आप हत्या-हत्या कहकर चिल्लाने लगते हैं
माफ़ कीजिएगा
हम किसी और से नहीं

केवल अपनी हताशा से लड़ रहे हैं
और आप इसी को देशद्रोह बता रहे हैं

हम हिंस्र पशु नहीं हैं
पर बिजूके भी नहीं हैं

हम चुपचाप संग्रहालय में नहीं जाना चाहते
हालाँकि हमारे लेखे आपकी यह दुनिया
किसी अजायबघर से कम नहीं है

हम कमज़ोर भाषा मगर मज़बूत सपनों वाले आदमी हैं
ख़ुद को कस्तूरी-मृग मानने से इंकार करते हैं

आप जो भाषा को खाते रहे
हमारे सपनों को खाना चाहते हैं

आप जो विचारों को मारते रहे
हमारी संस्कृति को मारना चाहते हैं

आप जो काल को चबाते रहे
हमारे भविष्य को गटकना चाहते हैं

आप जो सभ्यता को रौंदते रहे
हमारी अस्मिता को मिटाना चाहते हैं
पर हमारे संघर्षों का इतिहास हज़ारों साल पुराना है

आप बहुत बोल चुके हैं हमारे बारे में
इतना ज़्यादा कि
अब आपको हमारा बोलना भी गवारा नहीं है

फिर भी हम बताना चाहते हैं कि
आप जो कर रहे हैं
वह कोई युद्ध नहीं, केवल हत्या है

हम हत्यारों को योद्धा नहीं कह सकते
ये बाक्साईट के पहाड़ हमारे पुरखे हैं

आप इन्हें सेंधा नमक-सा चाटना बन्द कीजिए
यह लाल लोहा माटी हमारी माता है

आप बेसन के लड्डू-सा भकोसना इन्हें बन्द कीजिए
ये नदियाँ हमारी बहने हैं

इन्हें इंग्लिश-बीयर की तरह गटकना बन्द कीजिए
उधर देखिए
बलुआई ढलानों पर काँटों के जंजाल के बीच

बौंखती वह अनाथ लड़की
जनुम[1] हटा-हटाकर क़ब्र देखना चाह रही है
कहीं उसकी माँ तो दफ़्न नहीं है वहाँ

वह बार-बार कोशिश कर रही है हड़सारी
हटाने की
जिस के नीचे पिता की लाश ही नहीं
उसकी अपनी ज़िन्दगी दबी हुई है

आपके सिपाहियों के डर से
शेरनी की माँद तक में छिप जाती हैं लड़कियाँ

हमें शान्त छोड़ दीजिए अपने जंगल में
हम हरियाली चाहते हैं आग की लपटें नहीं

हम माँदल की आवाज़ें सुनना चाहते हैं
गोलियों की तड़तड़ाहट नहीं

न पर्वतों पर खाऊड़ी है
न ही नदी किनारे बड़ोवा
अगली बरसात में

फूस का छत्रा बन जाएँगी हमारी झोपड़ियाँ
हमें अपना अन्ना उगाने दीजिए

भला आप क्यों बनाना चाहते हैं यहाँ
मिलिटरी छावनी
यहाँ तो चारों तरफ़ अपना ही देश है

देखिए आसमन से बरसने लगी है
वर्षा की कोदो के भात-जैसी बूँदें
अब तो बन्द कीजिए गोलियाँ बरसाना

 

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