Hindi Poem of Maithili Sharan Gupt “Sukhi ve Mujse Kah Kar Jate”, “सखि वे मुझसे कह कर जाते” Complete Poem for Class 10 and Class 12

सखि वे मुझसे कह कर जाते

सखि, वे मुझसे कहकर जाते,

कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते ?

मुझको बहुत उन्होंने माना

 फिर भी क्या पूरा पहचाना ?

मैंने मुख्य उसी को जाना

 जो वे मन में लाते ।

 सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।

 स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,

प्रियतम को, प्राणों के पण में,

हमीं भेज देती हैं रण में –

क्षात्र-धर्म के नाते ।

 सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।

 हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा,

किसपर विफल गर्व अब जागा ?

जिसने अपनाया था, त्यागा;

रहे स्मरण ही आते !

सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।

 नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,

पर इनसे जो आँसू बहते,

सदय हृदय वे कैसे सहते ?

गये तरस ही खाते !

सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।

 जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,

दुखी न हों इस जन के दुख से,

उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से ?

आज अधिक वे भाते !

सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।

 गये, लौट भी वे आवेंगे,

कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,

रोते प्राण उन्हें पावेंगे,

पर क्या गाते-गाते ?

सखि, वे मुझसे कहकर जाते ।

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