Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Mere desh udas na hona”,”मेरे देश उदास न होना” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मेरे देश उदास न होना

 Mere desh udas na hona

 

कुछ पहचाने कुछ, अनजाने दृष्य देख मन भरमा जाता,

एक पहेली पसरी लगती , अपना देश याद आता है!

कहाँ गए सारे टेसू- वन, कैसे सूखी वे सरिताएँ

उजड़ा जीवन जीती होंगी साँसें, जैसे हों विधवाएँ

जिनका तन-मन-जीवन सींचा, तूने किया नेह से पोषित

मेरे देश, शप्त-सा तू अपनी ही संतानों से शोषित.

वहाँ पड़ रहा सूखा, मेरे नयनों में सावन-घन घहरे,

कोई संगति नहीं किन्तु कुछ रह रह कर घिर-घिर आता है

कितना बदल गया जीवन-क्रम इस पड़ाव तकआते आते!

कलम नहीं रुक पाती, पर कैसे, लिख पाए सारी बातें,

धरती की फसलों पर जैसे शाप छा गए हों अतृप्ति के

जल-धाराएँ हो मलीन उत्ताप जगा देतीं विरक्ति से

भरी भरी सरिताएँ, घन वन नीले पर्वत देख यहाँ के

अपनी श्यामल धरती का स्नेहिल आवेग जाग जाता है ..

उड़ जाते संतप्त हृदय के भाव, अभाव शेष रहजाते

शब्द न मेरे बस में उठकर अनायास अंकित हो जाते

मेरे देश, आँसुओं की बेरंग इबारत कौन पढ़ेगा,

चकाचौंध के पीछे छाए अवसादों की कौन कहेगा

यहाँ वक्र रेखाओंवाले मकड़-जाल फैले पग-पग पर,

मेरे मोहित मानस को वो ही परिवेश याद आता है!

उस जल की बूंदें संचित हैं पके हुए जीवन के घट में

उस माटी की गंध सुरभि बन समा गई है नासापुट में

तेरे लिए कहे कोई कुछ, वह ध्वनि कानों से टकराती

साँसों में तेरे समीर की शीतल छुअन अभी है बाकी,

बहुत पहाड़े पढ़ा चुकी पर फिर भी मन की रटन न टूटी

तेरी आँचल-छाया में अपना संसार याद आता है

अभी अमाँ के प्रहर न बीते, दीप-वर्तिका पर काजल है,

मेरे देश हताश न होना, बीत रहा हर भारी पल है,

मत उदास होना, कोई संध्या फिर नया चाँद लाएगी,

सारा गगन गुँजाते तेरे वे सँदेश धरती गाएगी .

मेरी जननी, यह अनन्यता उन श्री-चरणों में स्वीकारो

तेरा नामोच्चार प्राण में संजीवन छलका जाता है!

 

 

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