Hindi Poem of Sahir Ludhianvi “ Kisi ko udas dekha kar“ , “किसी को उदास देख कर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

किसी को उदास देख कर

 Kisi ko udas dekha kar

तुम्हें उदास सा पाता हूँ मैं काई दिन से

ना जाने कौन से सदमे उठा रही हो तुम

वो शोख़ियाँ, वो तबस्सुम, वो कहकहे न रहे

हर एक चीज़ को हसरत से देखती हो तुम

छुपा छुपा के ख़मोशी में अपनी बेचैनी

ख़ुद अपने राज़ की ताशीर बन गई हो तुम

मेरी उम्मीद अगर मिट गई तो मिटने दो

उम्मीद क्या है बस एक पास-ओ-पेश है कुछ भी नहीं

मेरी हयात की ग़मग़ीनीओं का ग़म न करो

ग़म हयात-ए-ग़म यक नक़्स है कुछ भी नहीं

तुम अपने हुस्न की रानाईओं पर रहम करो

वफ़ा फ़रेब तुल हवस है कुछ भी नहीं

मुझे तुम्हारे तग़ाफ़ुल से क्यूं शिकायत हो

मेरी फ़ना मीर एहसास का तक़ाज़ा है

मैं जानता हूँ के दुनिया का ख़ौफ़ है तुम को

मुझे ख़बर है ये दुनिया अजीब दुनिया है

यहाँ हयात के पर्दे में मौत चलती है

शिकस्त साज़ की आवाज़ में रू नग़्मा है

मुझे तुम्हारी जुदाई का कोई रंज नहीं

मेरे ख़याल की दुनिया में मेरे पास हो तुम

ये तुम ने ठीक कह है तुम्हें मिला न करूँ

मगर मुझे बता दो कि क्यूँ उदास हो तुम

हफ़ा न हो मेरी जुर्रत-ए-तख़्तब पर

तुम्हें ख़बर है मेरी ज़िंदगी की आस हो तुम

मेरा तो कुछ भी नहीं है मैं रो के जी लूँगा

मगर ख़ुदा के लिये तुम असीर-ए-ग़म न रहो

हुआ ही क्या जो ज़माने ने तुम को छीन लिया

यहाँ पर कौन हुआ है किसी का सोचो तो

मुझे क़सम है मेरी दुख भरी जवानी की

मैं ख़ुश हूँ मेरी मोहब्बत के फूल ठुकरा दो

मैं अपनी रूह की हर एक ख़ुशी मिटा लूँगा

मगर तुम्हारी मसर्रत मिटा नहीं सकता

मैं ख़ूद को मौत के हाथों में सौंप सकता हूँ

मगर ये बर-ए-मुसाइब उठा नहीं सकता

तुम्हारे ग़म के सिवा और भी तो ग़म हैं मुझे

निजात जिन से मैं एक लहज़ पा नहीं सकता

ये ऊँचे ऊँचे मकानों की देवड़ीयों के बताना या कहना

हर काम पे भूके भिकारीयों की सदा

हर एक घर में अफ़्लास और भूक का शोर

हर एक सिम्त ये इन्सानियत की आह-ओ-बुका

ये करख़ानों में लोहे का शोर-ओ-गुल जिस में

है दफ़्न लाखों ग़रीबों की रूह का नग़्मा

ये शरहों पे रंगीन साड़ीओं की झलक

ये झोंपड़ियों में ग़रीबों के बे-कफ़न लाशें

ये माल रोअद पे करों की रैल पैल का शोर

ये पटरियों पे ग़रीबों के ज़र्दरू बच्चे

गली गली में बिकते हुए जवाँ चेहरे

हसीन आँखों में अफ़्सुर्दगी सी छाई हुई

ये ज़ंग और ये मेरे वतन के शोख़ जवाँ

खरीदी जाती हैं उठती जवानियाँ जिनकी

ये बात बात पे कानून और ज़ब्ते की गिरफ़्त

ये ज़ीस्क़ ये ग़ुलामी ये दौर-ए-मजबूरी

ये ग़म हैं बहुत मेरी ज़िंदगी मिटाने को

उदास रह के मेरे दिल को और रंज़ न दो

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